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अंगोपांग, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि के घटानेसे ७६ प्रकृतियां रहती हैं। आठवें में ७२ प्रकृतियोंका उदय होता है । पिछली ७६ मेंसे सम्यक्त्व प्रकृति, अर्द्धनाराच, कीलक और असंप्राप्तास्पाटिका ये तीन संहनन, इन चारका उदय नहीं होता है । नववेंमें ६६ का उदय होता है । पिछली ७२ मेंसे हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा इन छहको घटानेसे ६६ रहती हैं । दशवें गुणस्थान में ६० प्रकृतियोंका उदय होता है । पिछली ६६ मेंसे स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संज्वलन क्रोध, मान और माया इन छहको घटानेसे ६० रहती हैं । ग्यारहवें गुणस्थानमें ५९ का उदय होता है । पिछली ६० मेंसे एक संज्वलन लोभका उदय यहां घट जाता है । बारहवें में ५७ का उदय होता है । पिछली ५९ में से वज्रनाराच और नाराच घटाने से ५७ होती हैं । तेरहवें गुणस्थानमें ४२ प्रकृतियों का उदय होता है । पिछली ५७ में से ज्ञानावरणी - यकी ५, अन्तरायकी ५, दर्शनावरणीयकी ४, निद्रा और प्रचला इस तरह १६ व्युच्छिन्न प्रकृतियों के घटाने से ४१ रहीं, इनमें तीर्थकरकी अपेक्षासे एक तीर्थंकर प्रकृतिको मिलानेसे ४२ हुई । चौदहवें गुणस्थानमें १२ का उदय रहता है । पिछली ४२ में से इन तीस व्युच्छिन्न प्रकृतियों के घटानेसे १२ रहती हैं; - वेदनीय, वज्रवृषभनाराच, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुखर, दुःस्वर, प्रशस्तवहायोगति, अप्रशस्तविहायोगति, औदारिक शरीर, औदारिक