________________
(८४)
स्थानोंकी बन्धप्रकृतियां बतलाई । निश्चय नयसे आत्माको कर्मबन्धसे रहित जानना चाहिये ।
चौदह गुणस्थानों में १२२ प्रकृतियों का उदय । इक सौ सतरै इक सौ ग्यारै, सौ अरु सौ, चौ सत्तासीय । इक्यासी छैहत्तर बेहत्तर, छ्यासठ अरु साठ उदीय ॥ उनसठ सत्तावन ब्यालिस अरु, बारै प्रकृति उदै है जीय । चौदै गुणथानककी रचना, उदयभिन्न तुव सिद्ध सुकीय ॥ ६१ ॥
अर्थ - मिथ्यात्व गुणस्थानमें ११७ प्रकृतियोंका उदय होता है । १२२ मेंसे सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग और तीर्थंकरप्रकृति इन पांच प्रकृतियोंका उदय इस गुणस्थान में नहीं होता । दूसरे गुण-स्थानमें ११९ प्रकृतियों का उदय होता है । पहले गुणस्था-नकी ११७ में से मिथ्यात्व, आताप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधा -- रण और नरकगत्यानुपूर्वी इन ६ प्रकृतियोंका उदय नहीं होता है । तीसरे गुणस्थान में १०० प्रकृतियों का उदय होता है । दूसरे गुणस्थानकी १११ प्रकृतियोंमेंसे अनन्तानुबन्धी ४, एकेन्द्रियादिक ४, और स्थावर १, इन ९ व्युच्छिन्नि