________________
(१५०)
द्यानतराय कविने (मैंने) अनेक सिद्धान्तोंके कथनका मथन करके अर्थात् बहुतसे ग्रन्थोंका सार लेकर वर्णन किया है । इस सारे ही ग्रन्थमें जीवका नाम है अर्थात् इसके प्रत्येक पद्यमें जीवपदार्थका अथवा उसके सम्बन्धी भावों, कर्मप्रकृतियों, योनियों, नरक स्वर्गादिकोंका वर्णन है । जीव भावका अर्थात् जीवतत्त्वका मैंने श्रद्धान किया है।
समाप्त.
UTH