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(१२९) मनुष्य होकर, महाव्रत धारण करके मोक्षको भी प्राप्त कर सकता है; पर तीर्थकर नहीं हो सकता । तीसरे, दूसरे और पहले नरकसे निकलकर अचिन्त्य विभूतिका धारक तीर्थकर भी हो सकता है। भवनत्रिक देव ( भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी ) और सौधर्म, ईशान स्वर्गोंके देव मरकर एकेंद्रा पर्यायमें भी जन्म ले सकते हैं. परन्तु एकेंद्रीमें अग्निकाय, वायुकाय सूक्ष्म और साधारण जीव नहीं हो सकते हैं-वादर पृथ्वीकाय, जलकाय, वनस्पतिकाय हो सकते हैं । तीसरे सनत्कुमार स्वर्गसे बारहवें सहस्रार स्वर्गतकके देव पंचेंद्री पशु हो सकते हैं-एकेंद्रियादि नहीं हो सकते और बारहवें स्वर्गसे ऊपरके देव एक मनुष्यशरीरमें ही अवतार लेते हैं-अन्य गतियों में नहीं जाते । स्वर्गों के आठ युगल हैं और उनमें बारह इंद्र हैं । इन बारह इंद्रोंमें छह उत्तरके हैं और छह दक्षिणके हैं । दक्षिणके छह इंद्र, सौधर्म स्वर्गकी इंद्राणी, सौधर्म स्वर्गके चारों लोकपाल ( सोम, यम, वरुण, कुबेर ), लौकान्तिक देव और सर्वार्थसिद्धि स्वर्गके सब अहमिन्द्र ये केवल एक ही भव धारण करके मुक्त हो जाते हैं, इसलिये उन सबको मेरा नमस्कार है ।
कषायोंके दृष्टान्त और उनके फल । पाहनकी रेख, थंभ पाथरको, बाँसबिड़ा, १ नरकका निकला हुआ जीव सीधा स्वर्गमें जन्म नहीं ले सकता और स्वर्गसे च्युत हुआ सीधा नरकमें नहीं जासकता है, ऐसा नियम है । स्त्री मरण करके छट्टे नरकतक जा सकती है, सातवें नरकमें नहीं जा सकती।
च० श०९