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(१०४) अन्तर दिसा हजार पेट ऊंचे हैं हजार, नीचें और मुख सौके धन्य जैनग्यान है ॥७३॥
अर्थ-जम्बूद्वीपके आसपास जो लवणोदधि समुद्र है, उसके बीचमें चारों दिशाओंमें चार कूप हैं । उनका आकार मृदंगके समान है । उनका पेट अर्थात् मध्यकी चौड़ाई और ऊंचाई एक एक लाख योजनकी है तथा वे नीचे तलीमें और मुंहपर दश दश हजार योजनके विस्तारवाले हैं । दिशाओंके सिवाय विदिशाओंमें भी चार कूप हैं। उनका पेट और ऊँचाई दश दश हजार योजनकी और नीचेका तथा मुखका विस्तार हजार हजार योजनका है। दिशा और विदिशाओंके बीचमें आठ अन्तर दिशाएँ हैं, उनमें एक हजार कूप हैं । अर्थात् प्रत्येक अन्तर दिशामें सवा सवा सौ कूप हैं । इनके पेटोंका विस्तार और ऊँचाई हजार हजार योजनकी है और नीचेका तथा मुंहका विस्तार सौ योजनका है । इस तरह सब मिलाकर १००८ कूप या बड़वानल हैं । ऐसे ऐसे परोक्ष विषयोंका बतलानेवाला जिन भगवानका ज्ञान धन्य है।
सठ इंद्रक विमान। • पैंतालीस लाखको है इंद्रक रिजूविमान, सर्वारथ सिद्ध अंत एक लाखका कहा । चवालीस घटे हैं तेसठमैं वासठि ठौर, ऊंचे ऊंचे एक एक केता घटती लहा ॥