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________________ चर्चासागर [ ७६ ] ७८-चर्चा अठहत्तरवीं प्रश्न- जोवोंके भाव कौन-कौन हैं और उनका स्वरूप क्या है ? समाधान -- जीव नामक तत्व के मूलभाव पाँच हैं औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, और्वाधिक और पारिनामिक | ये पांच भाव समस्त जोवोंके समुच्चयरूपसे हैं । सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है । औपशमिक क्षायिक भावौ मिश्रश्व जीवस्य स्वतत्त्वमोदयिकपारिणामिकौ च । - अध्याय २रा सूत्र १ । इनका अर्थ इनके शब्दोंसे ही निकलता है अर्थात् जो कर्मके उपशमसे हों उन्हें औपशमिकभाव कहते हैं, जो कर्मोंके क्षयसे हों उन्हें क्षायिकभाव कहते हैं जो कर्मोके क्षय और उपशम दोनोंसे हों उनको क्षयोपामिक वा मिश्रभाव कहते हैं, जो कर्मोंके उदयसे हों उनको औदयिक और जो अपने आत्म तत्वसे उत्पन्न हो उनको पारिणामिकभाव कहते हैं। यह इनका सामान्य अर्थ है। इनके उत्तरभेद ५३ होते हैं, सो ही मोक्षशास्त्र में लिखा है । JA द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् । – अध्याय २ सूत्र सं० २ 1 ओपशमिक भावोंके दो भेद हैं-औपशिक सम्यग्दर्शन और औपशमिक चारित्र । क्षायिकके नौ भेद हैं-- केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनंतदान, अनंतलाभ, अनंत भोग, अनंत उपभोग, अनंत बीयं । क्षायिक सम्यदर्शन और क्षायिकसम्यक्चारित्र । मिश्रभावके अठारह भेद हैं- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान, कुमति ज्ञान, फुश्रुत ज्ञान, विभंगावधिज्ञान, चक्षुर्दर्शन, अच्चक्षुर्देशन, अवधिदर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम । औदायिकके इकईस भेव हैं । मिथ्यानरकगति, तियंचगति, मनुष्यगति, वैवगति, क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्रीवेद, पुवेद, नपुंसक देव, दर्शन, अज्ञान, असंयत, असिद्धत्व, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, पीतलेश्या, तथा पारिणामिक तीन भेद हैं- जीवत्य, भव्यत्व, अभव्यश्व । ये सब सब मिलकर सो ही मोक्षशास्त्र में लिखा है पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या । तिरेपन भाव होते हैं। 43 K
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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