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सम्यक्त्वचारित्रे । शानदर्शनदानखामभोगोपभोगवीर्याणि च। ज्ञानाशानदर्शन
लब्धयश्चतुस्त्रिस्त्रिपंचभेदाःसम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च ।गतिकषायलिंगमिन्यादर्शनाचर्चासागर ज्ञानासंयतासिखलेश्याश्चतुश्चतुरत्येकैकैकैकषड्भेदाः । जीवभव्याभव्यत्वानि च।
... -अध्याय २ सूत्र सं० ३।४।५।६।७ मा इस प्रकार इनका स्वरूप जानना। इनका विशेष वर्णन श्रीदेवसेनमुनि विरचित भावसंग्रहसे जान लेना चाहिये।
७६-चर्चा उन्यासीवीं प्रश्न-मनुष्यके तथा संशो पंचेन्द्रिय पशु पक्षी आवि जोधोंके तोन वेव ( लिंग-स्त्रीलिंग, पुल्लिग, । नपुसक लिंग ) होते हैं परन्तु नरक गतिक की और एप्रियापि नगर्छन की जोवोंके कौनसा लिंग होता है ?
समाधान---नरकके नारकियोंके तथा समस्त सम्मन्छन जीवोंके केवल नपुसक लिंगका उदय होता है। इसलिये उनके स्त्रीवेद और नपुसक घेद नहीं होते ऐसा नियम है । तथा देवोंके नपुंसक वेद नहीं होता उनके स्त्रीवेव और पुवेव वो हो लिंग होते हैं और मनुष्य तथा गर्भज पशु पक्षियोंके तीनों ही वेद होते हैं । सो हो मोक्षशास्त्रमें लिखा है। नारकसम्मछिनो नपुंसकानि । न देवाः। शेषास्त्रिवेदाः।
-अध्याय २ सूत्र सं० ५० ।५१। ८०-चर्चा अस्लीवीं प्रश्न-राजा शिशुपालने कृष्ण नामके नारायणको रुक्मिणीका हरण करते समय एक सौ गालियां । वो। तदनंतर नारायणने उसको मारा । इस प्रकार हरिवंशपुराणमें वा जेनपुराणों में सुना है। परन्तु वहाँपर सौ गालियों के नाम कहीं नहीं लिखे केवल दो चार नाम लिखे हैं सो वे सौ गालियां कौन-कौन सी हैं।
समाधान-रुक्मिणीके हरण करते समय युद्धमें शिशुपाल कृष्ण नामके वासुदेवसे कहता है--रे कोषो ।
समाना