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________________ सागर [1] सावयगुणे हि जुसा पमत्तबिरदाय महिमा होति । जिणवयणे अणुरत्ता उवसमसीला महासत्ता ॥१६॥ इस प्रकार मध्यम अन्तरात्माका स्वरूप बतलाया। जो उपशमसम्यक्त्व, क्षायिकसम्यक्त्व अथवा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वसे सुशोभित हो, जो जिनेन्द्रदेवके चरणकमलोंका भक्त हो, अपने किये हुए पापोंकी निश करनेवाला हो, महाव्रतादि गुणोंको धारण करनेकी जिसको तीन लालसा हो ऐसे चतुर्थ पुणस्थानवर्ती श्रावकोंको जघन्य अन्तरात्मा कहते हैं । सो ही स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षामें लिखा है । अविरयसम्माइट्ठी होति जहण्णा जिणंदपयभत्ता। अपाणं णिदत्ता गुणगहणे सुटु अणुरत्ता ॥१८॥ इस प्रकार तीनों प्रकारके अन्तरात्माओंका स्वरूप बतलाया। जो परमौवारिक शरीरसे सुशोभित है और कंवलज्ञानके द्वारा समस्त पदार्थोके ज्ञाता वृष्टा हैं ऐसे श्री ॥ भरहन्त भगवान् सकेल परमात्मा है तथा जिनके कान ही शरीर है, जो परमौदारिक शरीरसे भी रहित हैं ऐसे सिद्धपरमेष्ठी निकल परमात्मा है। ये निकल परमात्मा सर्वोत्कृष्ट सुखसे सुखी हैं । सो हो स्वामिकातिकेया। नप्रेक्षामें लिखा है। ससरीरा अरहंता केवलणाणेण मुणिय सयलस्था । णाणसरीरा . सिद्धा सव्वुत्तमसुक्खसंपत्ता ॥१६६॥ इस प्रकार बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्माका स्वरूप जानना । इससे भी विशेष स्वरूप जानना हो तो श्री सकलकीर्तित 'सार पविशतिका' तथा श्रीयोगीन्द्रदेव कृत परमात्मप्रकाशसे जान लेना चाहिये। इनके सिवाय अन्य जैन सिद्धान्तोंसे भी जान लेना चाहिये। उनमें विशेष लिखा है। हमने यहां संक्षेपमें । लिखा है। -SERIAGR AT १. कल शब्दका अर्थ शरोर है जो शरीरसहित परमात्मा हों वे सकल परमात्मा हैं तथा जो शरीर रहित परमात्मा हों वे निकल परमात्मा हैं।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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