SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम- सम्पन्ना दुर्खियो मृत्वा गच्छंति देवदुर्गतीः। कंदपाया इति प्रोक्ता नीचयानिभवा दिवि ॥६०॥ । असत्यं यो ब्रुवन् हास्यसरागवचनादिकान् । कंदर्पोदीपका लोके कंदर्परतिरञ्जितः॥६१ वर्षासागर कंदर्य संति देवा ये नाग्नाचार्याः सुरालये। कंदर्पकर्मभिस्तेषु द्युत्पद्यते शतशमः ॥६२॥ [७३ ] मंत्रतंत्रादिकर्माणि यो विधत्ते बहुनि च। ज्योतिष्कभेषजादीनि परकार्याशुभानि च ॥६३॥ हास्यकुतूहलादीनि संघचैत्यालयस्य च ।आगमस्याविनितोय अत्यनीकः सुधर्मिणाम्॥६॥ ___ मायाविकिल्विषाक्रांतः किल्विषादिकुकर्मभिः। स किल्विषसुरो नीचो भवेत्किल्विषजातिषु ॥६५॥ । उन्मार्गदेशको योत्र जिनमार्गविनाशकः । सन्मार्गाद्विपरीतः स दृष्टिहीनः कुमार्गगः ॥६६॥ मिथ्यामायादिमोहाना मोहयन् मोहपीडितः । जायते स स्वमोहेष भंडाभरणजातिषु ॥६७॥ क्रोधी क्षुद्रः खलो मारी मायावी दुर्जनो यतिः। युक्तोनुबद्धवैरेण तपश्चारित्रकर्मसु ॥६८॥ । संक्लिष्टः सनिदानो य उत्पद्यन्ते स कर्मणाम् । रौद्रासुरकुमारेषु.....। इत्यादि लिखा है। ७७-चर्चा सतहत्तरवीं प्रश्न-सिद्धांतमें आत्माके तीन भेद बसलाये हैं उनका स्वरूप क्या है ? समाधान--इस लोकमै जोष नामक व्यके तीन भेद बतलाये है-बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा । सो हो स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षामें लिखा है जीवा हवंति तिविहा वहिरप्पा तहेव अंतरप्पा य परमप्पा । इत्यादि इनका स्वरूप इस प्रकार है। जिनकी आत्मामें मिथ्यात्व कर्मका तीन परिणमन हो रहा है। जिनके । अनंतानुबंधो क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायोंका तोत्र उदय है तथा अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन इन कषायोंका भी तीन उवय है तथा जो चैतन्य और प्रारीरको एक ही पदार्थ मानता है । ऐसा जीव इस संसारमें बहिरात्मा गिना जाता है । सोही स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षामें लिखा है RSanitakshakti [७ THAN
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy