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________________ सागर १] समाधान-एकबार बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाप गृहल्यावस्थामें ही अपने पुत्रके साथ सभामें । विराजमान थे। वहाँपर पट्टहस्तीका (मुख्य हाथोका ) प्रसंग आ गया था। उस समय भगवान्ने अपने अवधिमानके द्वारा सब सभासबोंको उस पट्टहस्तीका वृत्तान्त कहा था। सो ही प्रोसोमसेन कृत लघु पद्मपुराण बारहवीं सन्धिमे लिखा है। पट्टहस्ती तदा मुक्तः भुक्किं करोति दुःखदाम् । तदृष्ट्वावधिनेत्रेण जिनः प्राह जनान् प्रति ॥ ११॥ ___ इससे सिद्ध होता है कि तीर्थकर गृहस्थ अवस्थामें अवधिज्ञानको जोड़ते हैं । अवधिशानके विचारनेका (जोड़नेका ) कुछ निषेष नहीं है। ७६-चर्चा छिहत्तरवीं प्रश्न-देवोंको जातिमें दुर्गति जातिके वेव सुने जाते हैं सो क्या वेषोंमें भी दुर्गति है ? समाधान-जो अन्य लिंगी मिग्या तपश्चरण कर देवतिम मिथ्यादृष्टि देव होते हैं। वे देव बड़ोबडी ऋषियोंको धारण करनेवाले सम्यग्दष्टि बेवोंके यहां काम करनेवाले आभियोग्य जातिके देव होते हैं अर्थात् वेबासके समान काम करते हैं, गीत गाते नस्य करते है बाजे बजाते हैं और वाहनका (सवारीका रूप धारण करते हैं। इनके सिवाय कितने ही कवेव किस्विष जातिके भी हैं। ये सब जीव वर्गतिकेही कहलाते हैं। तथा आयु पूरीकर स्वर्गसे चयकर तियंच गतिमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुकायिक वनस्पति तथा प्रसकायिक पशु पक्षी होते हैं । सो ही रविषेणाचार्यविरचित पापुराणके चौथे पर्व में लिखा है यथाप्यद्धर्व तपः शक्त्या बजेयुः परिलगिनः । तथापि किंकरा भूत्वा ते देवान् समुपासते ॥ ४२ ॥ देवदुर्गतिदुःखानि प्राप्य कर्मवशात्ततः। स्वर्गाच्युत्वा पुनस्तियंग्योनिमायान्ति दुःखिनः॥४३॥ इस प्रकार भगवान् ऋषभदेवने अपनी दिव्यध्वनिके द्वारा बतलाया है। इससे सिद्ध होता है कि ऐसे देव स्वर्ग में भी बुख देखकर मरने के बाद तिर्यचतिमें जन्म धारण करते हैं। यही कथन श्रीबट्टकेर स्वामीने । चारों गतियोंका वर्णन करते समय मूलाचारमें लिखा है बाबा-SARLASSESARIORaनारम्वार
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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