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________________ सागर ७० ] तथा मांस, रुधिर, मज्जा, मेवा, कलेज, प्लीहा, अंतड़ी, नाभि, हृदय, गुदा ये सब माताके गुणोंसे उत्पन्न होते हैं सो लिखा है । मांसासूकूमज्जमेदांसि यकृत्प्लीहांत्रनाभयः । हृदयं च गुदं चापि भवत्येतानि ॥ मातृतः ऐसा चिकित्सक भावप्रकाशमें शारीरिक सम्बन्धमें लिखा है। अब आगे शरीरका विशेष स्वरूप कहते हैं पहले कहे हुए इस औदारिक शरीरमें ३०० हड्डियाँ हैं, ३०० संधियाँ हैं, ९०० स्नायु है जो कि तंतुके आकार हैं । ७०० सिरा हैं, ५०० मांसकी पेशियाँ हैं, ४ शिराजाल हैं, १६ कडरा हैं, ६ कंडमूल हैं, ७ रा हैं ७ करोड़ की संख्या है, आमाशय में रहनेवाली आंतोंकी षष्ठी १६, कुथिताश्रय ७, स्थूल ३, मर्मस्थान १०७ है जहांवर चोट लगने से जीव जीवित नहीं रह सकता । तथा ९ व्रणमुख हैं जो नित्य कुपित वस्तुओंसे बहते रहते हैं । यह इस शरीर में मस्तक तो अपनी अंजुली प्रमाण है, मेंदा नामकी धातु दंडांजलि प्रमाण है, मज्जा नामकी धातु अपनी स्वांजलि प्रमाण है, पीर्य स्वांजलि प्रमाण है, वसा धातु तीन निजांजलि मात्र है, पिस भी तीन स्वांजलि प्रमाण है, इलेष्मा भो तीन स्वांजलि प्रमाण है, आठ सेर रुषिर है, सूत्र नामका उपधातु सोलह सेर है, भिष्टा चौबीस हैं, नख बीस हैं, दांत बत्तीस हैं, इनके सिवाय कृमि कोट, निगोव आदि जीवोंसे यह शरीर भरा हुआ है, सात धातुओंके नाम ये हैं--रस रुधिर मांस मेवा हाड़ मज्जा शुक्र इन धातुओंसे भरा हुआ यह शरीर है। ऐसा समझकर इस शरीरसे ममत्व छोड़ देना चाहिये और अपने चैतन्य स्वरूपका विचारकर इस संसार शरीरसे विरक्त हो जाना चाहिये। यह सब कथन श्री शिवकोटि मुनि कृत भगवती आराधनामें लिखा हे सो वहाँसे विचार लेना । प्रश्न - - यहाँ कोई प्रश्न करे कि मनुष्यके शरीरकी उत्पत्ति जो पहले कही थी उससे यह कथन मिला नहीं सो यह विपरीतता क्यों है समाधान -- विपरीतता नहीं है किन्तु सामान्य और विशेष कथन हैं । ७५ - चर्चा पिचहत्तरखीं प्रश्न- सीर्थंकर गृहस्थाश्रम में अपने अवधिज्ञानको विचारें या नहीं ? 201 [ ७०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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