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चतुर्थ स्नानको रात्रिमें वह स्त्री पुरुषसे दो बार संभोग करे तो उसके दो बालक उत्पन्न होते हैं । सो ही भाव.
प्रकाश नामके आयुर्वेद शास्त्रमें लिखा है। पर्चासागर
"युग्माषु पत्रा जायन्ते स्त्रियोऽयुग्मासू रात्रिषु ॥" तथा अन्य शास्त्रों में अन्य प्रकार भी इसका वर्णन किया है। वह इस प्रकार है-जो रात्रिमें संभोग समय परस्परको हवाके घातसे रजोवीर्यका पिंड अलग-अलग वो जगह हो जाय और उसमें दो जीव आ जायं
तया वे दोनों ही वृद्धिको प्राप्त होते रहें तो दो बालक उत्पन्न होते हैं । सो हो चिकित्सिकमें लिखा है। । परस्परानिलाघातात् प्रभिन्ने कलिले द्विधा । तनुप्रवृद्धे तयुग्मे युग्मं तस्मात्प्रजायते ॥ ऐसा वैद्यकशास्त्रमें लिखा है।
७४-चर्चा चौहत्तरवीं प्रश्न-मनुष्यकी उत्पत्ति तो समममें आ गई परन्तु इस मनुष्य के शरीरमें क्या-क्या पवार्थ है ?
समाधान-मनुष्य के शरीरमें जो जो पदार्थ हैं उन्हें संक्षेपसे लिखते हैं। माता-पिताके संयोग होनेके " बाद वह रजोवीर्यका पिंड दश दिनमें तो कलिल रूप होता है। उसके बाद वश विनमें कलुषीरूप आकार होता
है फिर वा दिनमें वह कलुषोरूप आकार स्थिर होता है । यहाँ तक एक महीना हुआ । इसके बाद दश दिनमें । । बुदबुदा होता है। फिर वंश विनमें घनाकार होता है। फिर दश दिन बाद मांसको पेशी बनने लगती है।
इस क्रमसे दूसरे महीनेमें पुद्गल पूर्ण करता है। तदनंतर चर्म नख रोम अंग उपांग आवि अनुक्रमसे आठ 6 महीने तक पहले कहे अनुसार उत्पन्न होते रहते हैं और फिर नौवें दशवे महीनेमें वह जन्म लेता है।
इस शरीरमें शिर, मुख, दाढ़ी, सब शरीरके केश, बोस नख, बत्तीस दाँत, धमनी, नाडी आदि सिरा नसें शुक्र ये सब पिताके गुणोंसे उत्पन्न होते हैं सो हो लिखा है
केशाः स्मश्र च लोमानि नखा दंता शिरस्तथा । धमन्यः खावयः शुक्रमेतानि पितृजानि हि ॥
KESARIaSanचाचा
-सामान्य