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________________ पर्यासागर ।६७] समाधानविदेहे क्षेत्रोंमें जो एक सौ साठ क्षेत्र है तथा तत्संबंधी जो एक सौ साठ विजया पर्वत । हैं उनके जीवोंकी आयु काय तो सबकी समान है। वहाँपर उत्कृष्ट आयु तो एक करोड़ पूर्व है तया शरीरका प्रमाण पाँच सौ धनुष है । वहाँपर सवा चौथे कालके प्रारम्भकोसी रोति बनी रहती है । तथा पांच भरस और ॥ पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी वत विजयादों पर रहनेवाले जोबोंकी आयु काय घटती बढ़ती रहती है उत्सपिणी। कालमें बढ़ती रहती है और अवसर्पिणीकालमें घटती रहती है । उत्कृष्ट आयु एक करोड़ पूर्वकी होती है और शरीर पांच सौ धनुष ऊंचा होता है। यह अवस्था श्री ऋषभवेवके समय में होती है। तथा उत्सपिणो कालके अंतिम तीर्थकर श्री शांतके समयमें भी यही अवस्था रहती है। तथा श्रीमहावीरस्वामोके समयमें दो धनुषका शरीर और एक सौ बीस वर्षको उत्कृष्ट आयु होती है । तथा मध्यवर्ती समयमें आयु काप भी होनाधिक समान । लेना चाहिये । ऐसा श्री बृहत् हरिवंशपुराणकी पांचवीं संधिमें इलोक नं० ५१-५२-५३-५४-५५ में लिखा है । वहाँसे विचार लेना चाहिये। __७२-चर्चा बहत्तरवीं प्रश्न–गर्भज जीवोंमें मनुष्यकी उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? समाधान-पुरुष स्त्रीके संयोग होनेपर स्त्रीके गर्भ रहता है सो पिताके चोर्य और माताके रुधिरके मिलनेसे माताके गर्भाशयमें जीव आफर उत्पन्न होता है। वह अनुक्रमसे बढ़ता है और फिर जन्म लेता है । । इसका भी विशेष वर्णन इस प्रकार है-योनिके भीतर गर्भाशयमें माता पिताके रजोवोर्यके इकट्ठे होनेपर मोवा आकर उत्पन्न होता है। तदनन्तर एक रात्रिमें उसका कल्वल बनता है। फिर पांच रातमें वह कल्बल, बुबुवाके आकारमें परिणत हो जाता है। फिर पन्द्रह दिनमें वह बुदबुदा अण्डेके रूपमें बन जाता है, एक महीने बाद उस अंडेमें मस्तक बननेका अंकूरा उत्पन्न हो जाता है। दो महीने बाद हृदय बनता है। तीसरे महीने में । पेट बमता है, चौथे महीनेमें हाथ पैर बनते हैं, पांचवे महोनेमें हाथ पैरकी उँगलियां और न निकलते हैं छठे १. एक मेक संबंधी बत्तीस विदेह होते हैं तथा पांचों मेरु संबंधी एक सौ साठ विदेह होते हैं इनमें प्रत्येकमें एक एक विजयाच पर्वत है सो एक सौ साठ विजयाई तो ये हुए । तथा पाँच भरत और पांच ऐरावत क्षेत्रों में दम विजया“ होते हैं इस प्रकार एक सौ सत्तर विजयाद्ध होते हैं।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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