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________________ बांसामर ५१] सिद्ध अवस्थाको प्राप्त होते है ये भी वहाँ जाकर विराजमान होते हैं और आगामी अनंतकाल तक जो सिद्धत होते जायेंगे वे सब वहीं जाकर विराजमान होंगे। वहांपर परिमित ( नपे हुए पैतालीस लाख योजन ) क्षेत्रमें सब हो एक ज्योतिस्वरूप अवगाहनामें विराजमान हैं सो वहाँपर संकीर्णता क्यों नहीं होती क्योंकि उस थोड़ेसे । क्षेत्रमें अनंतानंत सिद्ध विराजमान हैं। समाधान—उस क्षेत्रमें ऐसी अवगाहना शक्ति है कि उस अवगाहना शक्तिसे वहाँपर किसो कालमें में भी संकीर्णता नहीं होती। इसी बातको उदाहरण देकर स्पष्ट रोतिसे दिखलाते हैं । जैसे-जम्बू द्वीप एक लाख योजनका है तथा तीर्थंकरोंको जन्मस्थानको अयोध्या आदि नगरी बारह योजन लम्बी और नो योजन चौड़ी है । उसमें तीर्थंकरोंके पंच कल्याणकोंमें इन्द्राविक समस्त देव एक लाख योजन प्रमाण हाथीको साथ लेकर आते हैं सो वहाँ भी संकीर्णता नहीं होती सब समा जाते हैं। तथा एक बर्तनमें ऊपर तक जल भर देवे फिर उसमें जलके बराबर ही शक्कर वा बरा भर देखें तो बह जल शक्कर वा बराके मिलानेसे उस बर्तनके बाहर नहीं निकलता। उतना ही बूरा मिल जानेपर भो उस जलमें संकीर्णता नहीं होती। तोसरा उदाहरणअक्षीण महानस ऋद्धिको धारण करनेवाले मुनि जहाँ आहार ले लेते हैं उस क्षेत्रमें तथा उसी रसोईमें चक्रवतीकी सब सेना भोजन कर सकती है तथा उसी थोड़ेसे क्षेत्र चक्रवर्तीकी सब सेना बैठ सकती है, न तो वह रसोई ही घटती है और न उस क्षेत्रमें ही संकीर्णता आतो है । इसी प्रकार और भी युक्तियों के उदाहरण समझकर उस थोड़ेसे सिद्धक्षेत्रमें अनंत सिद्धोंकी अवगाहना सिद्ध कर लेना चाहिये। १. बास्तवमें देखा जाय तो सिद्धोंका शव आत्मा अमृत है तथा अमर्त पदार्थ जगह नहीं रोक सकता यही कारण है कि एक-एक सिद्धको अवगाहनामें अनंतसिद्धोंकी अवगाहना विराजमान है। जब अमूर्त आत्मा जगह रोकता ही नहीं है तब एक ही सिद्धकी सबस बड़ी अवगाहनामें समस्त भूतकालके और भविष्यतकालके सिद्ध समा सकते हैं फिर भला वह क्षेत्र तो पैतालोस लाख योजन प्रमाण है उसमें संकोणता किस प्रकार आ सकती है। जगह रोकना स्थूल पुद्गल का काम है । स्थल पगलके सिवाय और कोई पदार्घ जगह नहीं रोकता । आकाश धर्म अधर्म काल और शुद्ध आत्मा कभी जगह नहीं रोकता । केवल स्थूल पुद्गल और स्थूल पुद्गलमय शरीरको धारण करनेवाला संसारी आत्मा जगह रोकता है। गुद्गल उनको कहते हैं जिनमें रूप रस गंध स्पर्श ये चार गुण हों। पुद्गलोंमें भी लो स्थूल सूक्षम हैं वे जगह नहीं रोकते जैसे धूप प्रकाश अंधकार आदि सूक्ष्म पुद्गल भी जगह नहीं रोकते। फिर भला सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म तो रोक ही नहीं सकते। ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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