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सागर
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श्रीन्य
इमे सिद्धा मया ध्येया वंद्या विश्वमुनीश्वरैः । स्तुताश्च मम कर्वन्तु स्वगतिं स्वगुणैः समम् ॥ १० ॥ त्रिलोकप्रज्ञप्ति में भी लिखा है---
देहे भावा हल्ल चरमभवे जस्स जारि संठाणं । तसो तिभागहीणं नुग्गहणा सव्वसिद्धाणं ॥
इस प्रकार जिनागममें लिखा गया है ।
जो जीव केवल नलकेशरहित सिद्धोंकी अवगाहना मानते हैं सो भ्रम है । इसलिये ऊपर लिखे अनुसार श्रद्धान करना योग्य है ।
४७- चर्चा सैंतालीसवीं
प्रश्न -- इन तीनों लोकोंमें पैंतालीस लाख योजनके पाँच स्थान बतलाये हैं सो कौन-कौन हैं ?
समाधान -- सिद्धक्षेत्र, सिद्धशिला, पहले स्वर्गका ऋजुबिमान, ढाई द्वीप, प्रथम नरकका पहला पाथरा ये पाँच क्षेत्र अलग-अलग पैंतालीस -पैतालीस लाख योजनके हैं । यह कथन त्रिलोकसार, सिद्धांतसार दीपक, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, बृहद्हरिवंशपुराण आदि अनेक जैन शास्त्रोंमें हैं ।
४८ - चर्चा अडतालीसवीं
प्रश्न -- एक-एक लाख योजनके तीन स्थान बतलाये हैं वे इस लोकमें कहाँ-कहाँ है ।
समाधान -- जंबूद्वीप, सातवें नरकका पहला इन्द्रक नरक और सर्वार्थसिद्धि नामका विमान । ये अलग अलग एक-एक लाख योजनके हैं। लिखा भी है-सर्वार्थसिद्धिर्ज्ञातव्या जंबूद्वीपस्तथैव च । माघवी अप्रतिष्ठानं त्रिस्थानं लक्षयोजनम् ॥४८॥
४६ - चर्चा उनचासवीं
प्रश्न --- सिद्धशिला और सिद्धक्षेत्र दोनों ही अलग-अलग पॅतालीस लाख योजनके बतलाये हैं । वहाँपर अनादिकालसे कर्मोंको नाशकर सिद्ध अवस्थाको प्राप्त होनेवाले अनंत जीव विराजमान हैं जो वर्तमानकालमें
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