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वर्चासागर
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पचासवीं
प्रश्न – मुनिराज आहारके लिये गाँव वा नगरमें जाते हैं सो कौनसी मुद्रा धारण कर जाते हैं ?
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समाधान – महा तपोषन मुनिराज दो पहरके समय सामायिक करनेके बावे आहारके लिये निकलते हैं उस समय सबसे पहले पूर्व दिशाकी ओर मुँहकर श्री जिनेन्द्रदेवको नमस्कार करते हैं फिर ईर्ष्या समितिको धारण करते हुए धीरे-धीरे आहारके लिये गमन करते हैं। उस समय वे मुनिराज अपने बायें हाथमें कमंडलु और पोछी इन दोनों उपकरणोंको रखते हैं और अपने दायें हाथको दायें कंधे पर रखते हैं । फिर अच्छी दृष्टिसे ( ईर्यासमिति ) श्रावकोंके घर जाते हैं। सो धर्मरसिक नामके ग्रन्थमें लिखा हैमध्याह्नसमये योगी कृत्वा सामायिकं मुदा । पूर्वस्यां तु जिनं नत्वा ह्याहारार्थं व्रजेच्छनैः ॥ ६६ ॥ पिच्छे कमंडलु वामहस्ते स्कंधे तु दक्षिणम् । हस्तं निधाय संदृष्टया स ब्रजेच्छ्रावकालयम् ॥७०॥ प्रश्न- यहाँ कोई प्रश्न करे कि मुनिराज श्रावकके घर जाते हैं सो वहाँपर बिना पहगाहे कितनी देर तक ठहर सकते हैं ?
समाधान – मुनिराज श्रावकके घर जाकर कायोत्सर्ग धारण कर ( नौवार नमस्कार मंत्रका अप करते हुए ) खड़े होते हैं यदि इतनी हो देरमें श्रावक उनका पडगाहन कर लेवे तो वे सब दोषोंको टालकर निरन्तराय भोजनपानको ग्रहण करते हैं यदि एक कायोत्सर्ग धारण करते समय तक कोई श्रावक उनका गान न करे तो फिर वे बहस चले जाते हैं जितनी देर में एक कायोत्सर्ग धारण किया जाता है उतनी
कोई-कोई स्थूल पदार्थ भी दूसरे को जगह दे देते हैं जैसे जल उतने हो बूरेको उतनो ही राखको और उतनी ही लोहे की कीलोंको उतने ही पात्र में जगह दे देता है ।
सिद्ध भगवान कर्म और दशरोर रहित हैं इसलिये उनका शुद्ध आत्मा जगत्को रोक नहीं सकता ।
१. मुनिराज सामायिकके बाद भी आहारको जाते हैं और दोपहर के सामायिकके पहले भी जाते हैं। अक्सर गृहस्थों के भोजनका समय दोपहरके सामायिकके पहले है इसलिये मुनिराज भी दोपहरकी सामायिकके पहले ही आहारको जाते हैं। कोई विशेष कारण उपस्थित होनेपर दोपहरको सामायिकके बाद भी जाते हैं।
२. पांचों उँगलियोंको मिलाकर उन मिली हुई उँगलियोंको कन्धेपर रख लेते हैं। यह उनकी आहारमुद्रा कहलाती है ।
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