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________________ सागर ४० ] बना है। स्था धातुका अर्थ गतिनिवृत्ति वा ठहरना है उसका पंचमी वा लोटका मध्यम पुरुषका एकवचन । तिष्ठ बनता है । सम् पूर्वक नि पूर्वक घि धातुका अर्थ निकट होता है। यज् धातु का अर्थ पूजा करना है। इसोसे याग वा इज्या बनता है। जिसका अर्थ पूजा करना है। तथा जः इस बीजाक्षरका अर्थ गमन करना है। अथवा गच्छ शब्द गम धातुसे बना है और उसका अर्थ भी जाना है इस प्रकार इन पांचों उपचारोंके वाचक शम्बोंका घात्वर्थ-धातुसे बना हुआ अर्थ बतलाया । ३७-चर्चा सेंतीसवीं . प्रश्न-गृहस्यके द्वारा होनेवाली भगवान् अरहन्त देवकी पूजामें छह क्रियाएं सुनी जाती है सो कौन। कौन हैं ? समाधान-सबसे पहले जलाविक पंचामृतसे भगवान् अरहन्सदेवका स्नपन वा अभिषेक करना । सो पहली क्रिया है । अभिषेकके बाद पहले कही हुई विधिके अनुसार पंचोपचारी पूजा करना सो दूसरी क्रिया है। पूजाके बाद उनका स्तोत्र पाठ करना सो तीसरी क्रिया है। स्तुति के बाद उनके वाचक मंत्रोंके द्वारा एक सौ आठ बार जप करना सोचोथी क्रिया है। तदनन्तर कायोत्सर्ग धारण कर उनका ध्यान करना सो पांचवीं क्रिया है। फिर शास्त्रोंके द्वारा पाँच प्रकारका स्वाध्याय करना सो छठी क्रिया है। इस प्रकार पर्वाचार्योने । बेवसेवा ( देवपूजा ) करनेके लिये गृहस्थोंको छह क्रियाओंके करनेका उपदेश दिया है। सो ही यशस्ति लक नामके महाकाव्यमें लिखा है। स्नपनं पूजनं स्तोत्रं जपं ध्यानं श्रुतिश्रवम्। क्रियाः षडुदिताः सद्भिः देवसेवासु गेहिनाम् ॥ ३८-चर्चा अड़तीसवीं प्रश्न-आठों कर्माको नाश कर सिद्ध भगवान् निरन्तर सियालयमें विराजमान रहते है सो वह । सिद्वालय लोकके अग्रभाग पर है या वातबलप के भीतर है या वातवलयके ऊपर है। १. दूध, दही, घी, इक्षुरस और सर्वोषधि ये पांच अमृत कहलाते हैं। इनसे विधिपूर्वक अभिषेक करना पंचामताभिषेक कहलाता है। २. अभिषेक, पूजा, स्तोत्र, जप, ध्यान, स्वाध्याय ये पूजा में छह क्रियाएँ बतलाई हैं। ३. द्रष्यसंग्रहमें भी लिखा है "सिद्धो झाएह लोअसिहरत्थो" अर्थात् सिद्धभगवान लोक शिखर विराजमान हैं उनका ध्यान करना। चाहिये। [४०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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