________________
| कहलाते हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार है-जो अरहंत देव आविकी पूजाके समय मंत्र पढ़कर उनका आह्वानम
करना उसके लिए युरुप अक्षत आदि स्थापन करना सो पहला आहानन नामका उपचार है । आह्वाननके बाद पर्चासागर मंत्र पढ़कर तथा पुष्प अक्षत आदि स्थापन कर उन पूज्य अरहंत आदिका स्थापन करना सो स्थापना नामका ३९] दूसरा उपचार है। स्थापना करनेके बाद पुष्प अक्षत आदिके द्वारा उन पूज्य अरहंताविकोंको अपने समीप
करना सो सन्निधिकरण नामका तोसरा उपचार है । तदनंतर जल चंवन अक्षत पुष्प नैवेध बोप धूप फल अर्धादिसे मंत्र पूर्वक उन पूज्य अरहंत आधिको पूजा करना सो चौथा पूजा नामका उपचार है तथा पूजा करनेके बाद स्तुति जप वंदना आदि करके मंत्र पढ़कर और पुष्प अक्षत आदि क्षेपण कर उनका विसर्जन करना । । सो विसर्जन नामका पांचवां उपचार है । इस प्रकार पंचोपचारी पूजाका स्वरूप जानना । सो ही लिखा है
ओं ह्रीं अर्हन श्रीपरमब्रहान् अत्रावतरावतर संवौषट् । इति आह्वाननम् ।
ओं ह्रीं अर्हन् श्रीपरमब्रह्मान अश्र तिष्ठ तिष्ठ ४ः ठः स्थापनम् । Tओं ह्रीं अर्हन् श्रीपरमब्रह्मन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधापनम् । भाओं ह्रीं परमब्रह्मणे अनंतानंतशानशक्तये अष्टावशदोषरहिताय षट्चत्वारिंशद्गुणविराजमानाय अर्हत्परमेष्ठिने में जलं निर्वपामोति स्वाहा ।।
इसी प्रकार चंबन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, वीप, धूप, फल, अर्ध आदि द्रव्य चढ़ाते समय बोला जाता है। तथा विसर्जन करते समय यह पढ़ा जाता है “ओं ह्रीं अर्हन् श्रीपरमब्रह्मन् स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः" । इस प्रकार पंचोपचारी पूजाका स्वरूप 'पूजासार' तथा प्रतिष्ठापाठ और जिनसंहिता आदि समस्त पूजाओंके
पाठोंमें लिखा है। इसलिए शास्त्र गुरु आविको पूजा भी इसी रोतिसे समझनो चाहिए अर्थात् इनकी पूजा भी पंचोपचारी करनी चाहिये।
कदाचित् यहाँपर कोई यह पूछे कि पंचोपचारके शब्द किस किस धातुसे बने हैं तो इसका उत्तर यह है कि आह्वान शब्द हृञ् धातुसे बना है । खेज् धातुका अर्थ आह्वान वा बुलाना है । स्थापन शब्द स्था धातुसे १. इन पांचों उपचारोंमें जो संवौषट्, ठः ठः, वषट् आदि शब्द हैं वे बीजाक्षर हैं। आह्वाननमें संवौषट्, स्थापनमें ठः ठः, सन्निधि
करणमें वषट् और विसर्जनमें जः जाता है।
RRZARSAATAPratis
p arda