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________________ । त्याग कर देते हैं और उसको उपवास कहते हैं सो मिथ्या है । जैनधर्मके अनुसार यह उपवास नहीं किंतु लंघन कहलाता है । सो स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षामें लिखा हैबर्षासागर उववासं कुठवंतो आरंभं जो करेदि मोहादो। [३८] सो णियदेहं सोसदि ण झाणए कम्मसेसपि ॥ ३७७ ॥ इसको टोकामें भी लिखा हैकषायविषयाहारत्यागो यत्र विधीयते । उपवासः स विज्ञेयः शेषं लंघनकं विदुः॥ प्रश्न- इससे सिद्ध होता है कि कवाय इंद्रियोंके विषय सब तरहके आरंभ और चारों प्रकारके आहारोंका त्याग करना हो उपवास है। ३५-चर्चा पैतीसवीं यदि किसीके ऊपर लिखे अनुसार उपवास करनेको शक्ति न हो और वह बीचमें जल पी लेवे तो उसको कैसा फल लगता है। समाधान-पहली बात तो यह है कि उपवास ऊपर लिखे अनुसार ही करना चाहिये। यदि कोई होनशक्सिवाला उपवासके दिन जल पी ले तो उसके आठवां भाग फल नष्ट होजाता है। यह बात प्रश्नोसरोपासकाचार नामके ग्रंथमें प्रोषधोपवासके कथन करते समय लिखी हैनीरादानेन हीयेत भागश्चवाष्टमो नृणाम् । उष्णेनैवोपवासस्य तस्मान्नीरं त्यजेत्सुधीः ।। ३६-चर्चा छत्तीसवीं प्रश्न-पंचोपचारी पूजाका स्वरूप क्या है ? समाधान---आह्वानन, स्थापन, सन्निधिकरण, पूजा और विसर्जन पे पाँच पूजाके उपचार वा अंग ! १. जो उपवास करता हुआ भी मोहके वश होकर आरंभ करता है वह केवल अपना शरीर सेखता है। उससे उसके कर्म कुछ भी नष्ट नहीं होते। । २. जिसमें कषाय विषय और आहारका त्याग किया जाता है उसोको उपवास कहते हैं बाकी सब लंघन हैं। [10
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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