________________
बोस चालीस योजन गहरा बना ही रहता है, भूत भविष्यत् वर्तमान किसी भी कालमें उन ब्रहोंका पानी नहीं
घटता तथा समुद्रका जल कभी बढ़ता नहीं समुद्रको मर्यावा भी अनावि कालसे अनंतकाल तक जैसेको तेसे हो 'पर्चासागर बनी रहती है। अथवा आकाशसे जलकी वर्षा होती है और वह सब समुद्र में जाती है तो भी आकाशमं जल [ ३७] घटता नहीं और समुद्र में बढ़ता नहीं इस प्रकार और भी उदाहरण हैं।
३३-चर्चा तेतीसवीं प्रश्न-यम नियमका अर्थ क्या है ?
समाधान-अपने जीवन पर्यंत पापोंका त्याग करना यम है और एक मुहूर्त एक दिन महीना को । महीना वर्ष दो वर्ग पनि कालपी मशिला गापा माग करना सो नियम है । सो हो रत्नकरंडनावकाचारमें लिखा है ।
"नियमः परिमितकालो यावज्जीवं यमो ध्रियते" इसका भी अभिप्राय यह है कि महामुनियोंके यम रूप त्यागको मुख्यता है नियमरूप त्यागकी गौणता है तथा श्रावकोंके नियमरूप त्यागको मुख्यता है और यमरूप गौणता है ।
३४-चर्चा चौंतीसवीं प्रश्न-उपवासका लक्षण क्या है?
समाधान-उपवास धारण करनेवाले भव्यजीव उपवास धारण करनेके समयसे लेकर आठ पहर तक, बारह पहर तक अथवा सोलह पहर तक क्रोध मान माया लोभ इन चारों कषायोंका सर्वथा त्याग कर देते हैं. स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु श्रोत्र इन पाँचों इन्द्रियों के स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द इन विषयोंका सर्वथा त्याग कर
देते हैं और 'खाद्य स्वाय अवलेह पान इन चारों प्रकारके आहारोंका सर्वथा त्याग कर देते हैं। इन सबके त्याग १ करनेको उपवास कहते हैं। जो लोग क्रोधादिक कषायोंका त्याग किए बिना हो केवल भोजन पान आदिका
१. दाल, रोटी, भात आदि भोजनके पदार्थोको खाध कहते हैं। पेड़ा, बरफी लौंग, इलायची आदि स्वाद लेने योग्य पदार्थोंको स्वाद्य
करते हैं। चाटने योग्य रबड़ी, चटनी आदिको अवलेह कहते हैं और दूध, पानी आदि पीने योग्य पदार्थोको पान कहते हैं।