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सागर
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दर्शन करनेमें दोष बतलाते हैं तथा मूर्ख लोगोंको भुलाकर रोकते हैं । इस प्रकार कहनेवाले और माननेवाले दोनों ही मूर्ख राजाके समान हैं, इसीलिये वे ऐसा मानते हैं ।
और देखो इस प्रकार कहनेवाले महा मिथ्याभाषो हैं 'जिनप्रतिमा के दर्शन करनेसे महापुण्य होता है और स्वर्ग मोक्षके फलकी प्राप्ति होती है" ऐसा पुराण और शास्त्रोंमें लिखा है परंतु अपनी आजीविका नष्ट होनेके डरसे ये लोग कहते नहीं हैं। तथा अपने मतके पक्षके अभिमानसे अनेक प्रकार के द्वेषरूप अन्यथा ( मिथ्या ) वचन कहते हैं और झूठो निंदा करते हैं।
कदाचित कोई यह कहे कि हमारे पुराण वा शास्त्रोंमें जिनप्रतिमाके दर्शन करना कहाँ लिखा है तो उसके लिये कहते हैं कि देखो शिवपुराण में लिखा है
Share विमले रम्ये वृषभोयं जिनेश्वरः । चकारास्तेवतारो यः सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ॥
अर्थ-- कैलाश पर्वत के शिखर पर श्रीवृषभदेव नामके जिनेश्वर भगवान अवतरित हुये हैं पधारे हैं सो ये ही सर्वज्ञ हैं के हो ज्ञानके द्वारा सर्वव्यापी हैं और वे ही कल्याण करनेवाले शिव हैं । अर्थात् इनके सिवाय न कोई सर्वज्ञ है, न कोई सर्व व्यापक है, न कोई विष्णु और न कोई शिव है । सर्वज्ञ सर्वव्यापक विष्णु और शिव ये ही वृषभदेव हैं । प्रभासपुराण में लिखा है
महापुण्यादर्शरूपा दृश्यते द्वारिका पुरी । अवतीर्णो हरियंत्र प्रभासशशिभूषणः ॥ १ ॥ रेवताद्रो जिनो नेमियुगादिविमलाचले । ऋषीणामादिदेवश्च मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥ 11 पद्मासनासमासीनः श्याममूर्तिदिगम्बरः । नेमिनाथः शिवेत्याख्यां चकारास्य व वामनः ॥
अर्थ- दक्षिण देशमें एक बामन हुआ है उसने गिरनार पर्वतपर श्रीनेमिनाथ भगवान के दर्शन किये थे । नेमिनाथ महापुण्यरूप और आदर्शस्वरूप द्वारिका नगरीमें जन्मे थे जहाँ कि चंद्रमाके समान कांतिको धारण करनेवाले नौवें नारायण कृष्णने अवतार लिया था । जिस प्रकार युग के प्रारंभ में श्रीवृषभदेव कैलाश पर्वतपर विराजमान हुये थे और अनेक ऋषियोंको मोक्षके कारण हुये थे उसी प्रकार धोनेमिनाथ भगवान गिरनार पर्वतपर विराजमान हुये थे । उस समय वे पद्मासन से सुशोभित थे, श्याममूर्ति थे और दिगम्बर थे । इस प्रकार नेमिनाथके दर्शन करनेपर वामनने उनकी स्तुति की और उनका शिव ऐसा नाम रक्खा और स्पष्ट शब्दों में
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