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________________ है उनकी बुद्धि जन्मसे हो भ्रष्ट है जन्मसे ही अंधे पुरुषके समान उन्हें किसी भी पवार्थका यथार्थ ज्ञान नहीं होता। ऐसे लोग अपनी इच्छानुसार पदार्थोके स्वरूपको मानते हैं किसी दूसरेकी नहीं सुनते । न मानते हैं। जो अपने मनमें आता है सो ही मानते है और यही करते हैं। उसी प्रकार अंधेकी लकड़ोके समान ब्राह्मणोंका कहना 1 है। तथा दूसरे लोग भी अन्धोंके समान हैं । ऐसे ही लोगोंके लिये यहाँपर एक प्रसिद्ध लौकिक उदाहरण दिख लाते हैं। सागर (६३ 22RREAD किसी राजाने किसी एकदिन सबेरे उठकर हो किसी सूमका मुंह देखा । जब भोजनका समय हुआ तब राजा भोजनके लिए बैठने ही जा रहा था कि सेवकोंने आकर समाचार दिये कि "महाराज सिंह धिर गया है" तब राजा अपने क्षत्रिय धर्मका स्मरण कर उसको मारनेके लिये चल दिया, उसने परोसा हुआ भोजन छोड़ दिया और भखा ही चला गया। बह राजा उस दिन सब दिन बनमें रहा उसने बहतसे । उपाय किये परन्तु वह सिंह वशमें नहीं आया। उस सिंहने अनेक लोग घायल किये और संध्या होते-होते वह भाग गया । तब राजा लाचार और उदास होकर भूखसे सताया हुआ ही अपने नगरमें आया। राजाने समझा कि उस सूमका मुख देखनेसे हो आज मुझे भोजन नहीं मिला है। तब वह उस सूमपर क्रोध करने लगा, । उसको बुलाया और सेवकोंको आज्ञा दी कि इसको मार डालो। दूसरे दिन सबेरे ही राजा सब लोगोंके साथ । बैठा था उस समय उस सूमने आकर पूछा कि महाराज ! ऐसा मेरा क्या अपराध है जिससे मेरे प्राण लिये जाते हैं। तब राजाने कहा कि तेरा मुख देखनेसे आज हमें अन्न नहीं मिला है आज हमें सब दिन भूखा मरना। पड़ा, इसीलिये तुझे मारनेकी आज्ञा दी है । राजाको यह बात सुनकर मूमने कहा कि मेरा मुंह देखनेसे आपको । एक दिन भूखा रहना पड़ा परन्तु शामको भोजन मिल गया। मेरे मुंह देखनेका इतना हो फल हुआ परन्तु महाराज आपका मह मैंने देखा था सो उसके फलसे तो मेरे प्राण ही जा रहे हैं अब आप हो कहिये इन। Hदोनोंमें किसका मुंह दुख देनेवाला और पापी है इससे तो राजाका ही मुख अधिक बुरा हुआ। क्योंकि उसके उसके देखनेसे समके प्राण गये। इसी प्रकार वह मनुष्य है जो यह कहता है कि जिनमविरमें जानेसे छह महीनेमें बुद्धि नष्ट हो जाती है ऐसे लोगोंको पीछेसे बुद्धि आती है । तथा कहनेवालेकी बुद्धि जन्मसे हो नष्ट। भ्रष्ट समझनी चाहिये। ऐसे लोग जन्म-जन्मान्तर तक ही होनबुद्धि रहते है और इसीलिये वे जिनप्रतिमाके "
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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