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________________ कोई जैम मंदिर हो और उसमें जाकर शरण लेनेसे उसमें जाने मात्रसे प्राण बचते हों तो भी उस जैन मंदिरमें। नहीं जाना चाहिये। ऐसा ब्राह्मणादिक लोग कहते हैं सो इसका क्या उत्तर है। चर्चासागर समाधान-इसका पहला उसर तो यह है कि यह वमन किसी ऋषिका नहीं है किसी मूर्खने ईर्ष्याके कारण गढ़ लिया है ! तथा उसका नाम लादने किये गानाचार्यका नाम रख दिया है अर्थात् उसे शंकराचार्यके वचन बतला दिये हैं सो प्रामाणिक नहीं हैं । केवल अंध परंपरासे चला आ रहा है। यदि कदाचित् इस श्लोकको मान ही लिया जाय तो उसका वास्तविक अभिप्राय ग्रहण करना चाहिये । उसका वास्तविक अभिप्राय यह है-भेड़, बकरे आदि जीवोंको मारकर अथवा शराब पीकर अथवा वेश्याके घर जाकर कोई पुरुष जैन मंदिरके समीपसे आ रहा हो और वहीं पर सामनेसे आते हुये किसी हाथीसे उसके माण नष्ट होते हों तो उसे अपने प्राण तो दे देने चाहिये कित उस महा अपवित्र अवस्थामें अपने प्राण बचानेके लिये उस पवित्र जैन मंदिरमें नहीं जाना चाहिये। क्योंकि जो पुरुष जीवोंका हिंसक है, शराब पीता है, और वेश्यागमन करता है वह महा पापी, महापातको, महा अधर्मों और महा अपवित्र है। ऐसे पुरुषको जैनमंदिरमें पैर रखना भी योग्य नहीं है मंदिर में जानेका उसे कोई अधिकार नहीं है। ऐसे पुरुषको तो जैन मंदिरसे । बहुत दूर होकर निकलना चाहिये । वह तो अस्पृश्य शूद्र के समान है। जैन मंदिरमें तो धर्मारमा पुरुषोंको ही जानेका अधिकार है। हत्या करनेवाले शरायो आदि लोगोंको जैन मंदिर में जानेका कोई अधिकार नहीं है । लोकमें बालगोपाल सब यह कहावत कहा करते है कि "गधोको । गंगा नहीं हैं उसी प्रकार श्रीजिन मंदिर गंगारूप है, श्रीजिनमूर्तिका वर्शन हो उसका निर्मल जल है वह ऊपर लिखे महापापीको प्राप्त नहीं हो सकता। यह उस इलोकका अभिप्राय है । इस समयमें भी कितने हो लोग ब्राह्मणोंके कहनेसे जिनमंदिरमें न जानेका नियम करते हैं सो कहनेवाले और न जानेका नियम लेनेवाले दोनों ही ऊपर लिखे जोयोंके समान हिंसक और शराबिघोंके समान महापापी समझना चाहिये । यही उस इलोकका अभिप्राय है। जो लोग यह कहते हैं कि जो कोई जैन मंदिर में जाता है उसको बुद्धि छह महोने में नष्ट हो जाती है। । सो. जिसकी बुद्धि जन्मसे हो भ्रष्ट हो गई है ऐसे ही पुरुष पागल पुरुषों के समान उन्मत्त होकर प्रलाप करते हैं।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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