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सागर
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दिणपडिमवीरचरियातियालजोगे नियमेण ।
सिद्धांत रहस्साधयणं अहियारो णत्थि देसविरियाणं ॥
दूसरे श्रावकाचारमें लिखा है
वीरचर्या च सूर्यप्रतिमात्रिकालयोगधारणं नियमश्च ।
सिद्धान्तरहस्यादिष्वध्ययनं नास्ति देश विरतानां ॥ धर्मामृतश्रावकाचार में लिखा है
श्रावको वीरचर्याहः प्रतिमातापनादिषु । स्यान्नाधिकारी सिद्धांत रहस्याध्ययनेऽपि वा ॥ धर्मोपदेश पीयूष वर्षा रावकाचार में भी लिखा है
कृतकारितं परित्यज्य श्रावकाणां गृहे सुधीः । उदम्बुभिक्षया भुक्तिं चैकवारं सयुक्तितः ॥ १ ॥ त्रिकालयोगनियमो वीरचर्या च सर्वथा । सिद्धांताध्ययनं सूर्यप्रतिमा नास्ति तस्य वे ॥२॥
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प्रश्न- गृहस्थों को सिद्धांत ग्रन्थोंके अध्ययन करनेका निषेष लिखा है। उसके सुनने वा बाचनेका निषेध नहीं लिखा है
समाधान- सुनना वा वाचना अध्ययनसे जुदा नहीं है। सबका एक ही अर्थ है । कोई सामान्य है कोई विशेष है । परन्तु हैं सब समान । यदि सुननेको, वाचनेको अध्ययन से जुदा माना जाय तो भी इन्द्रनन्दि सिद्धांतीने नीतिसार में लिखा है
आर्यिकाणां गृहस्थानां शिष्याणामल्पमेधसाम्। न वाचनीयं पुरतः सिद्धांताचारपुस्तकम् ॥ अर्थ — अजिकाओंके सामने, गृहस्थोंके सामने और अल्पबुद्धिको धारण करनेवाले शैक्ष्य मुनियों के सामने सिद्धांताचारके शास्त्र नहीं वाधने चाहिए। इस प्रकार लिखा है । इसलिए इस समय गृहस्थोंको सिद्धांत ग्रन्थोंका स्वाध्याय नहीं करना चाहिये ।
प्रश्न-भावकोंको सिद्धांत ग्रन्थोंके पठन-पाठनका निषेध किया वोरचर्या प्रतिमायोग आदिका निषेध fear तो फिर धावकोंको करना क्या चाहिए ?
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