________________
सागर
SMARTIMATE-
खाको इकईस परिवहोंका उब्य है। नौवें अनितिकरण गुणस्थानमे अवर्शन और अरति परिषहको छोड़कर बाकी बीस परिषहोंका उदय है । उसी अनिवृत्तिकरण नौवें गुणस्थानमें जब शुक्लध्यानके द्वारा वेव कर्मका नाश
हो जाता है तब स्त्रीपरिषह भी नष्ट हो जाती है उस समय स्त्री परिषहके बिना बाकी उनईस परिषहोंका । उदय रहता है । तदनंतर उसी अनिवृत्तिकरण नामके नौवें गुणस्थानमें जब मान कषायका नाश हो जाता है
वा उपशम हो जाता है तब नाग्न्य, निषद्या, आक्रोश, याञ्चा, सत्कार पुरस्कार इन पांच परिषहोंका अभाव हो। जाता है इसलिये उस समयसे लेकर बाकीके नौवें गुणस्थानमें तथा वशवें ग्यारहवें बारहवें गुणस्थानमें वीतराग ।
छपस्थके ऊपर लिखो नाग्न्य, निषद्या, आक्रोश, याचा और सत्कारपुरस्कार इन पांच परिषहोंको छोड़कर सुबाकोको चौदह परिषह हो सकती हैं। इन चारों गुणस्थानों में जो ये चौवह परिषह होती हैं वे बहुत ही थोड़ी
असाता उत्पन्न कर सकती हैं। तथा घातिया कर्मोके नाश होनेपर तेरहवें मुणस्थानवर्ती सर्वज्ञ पोतरागके इन चौवह परिषहोंमेंसे प्रशा अज्ञान और अलाभ परिषहको छोड़कर बाकीको ग्यारह परिषहोंका उदय रहता है। ये ग्यारह परिषह बेदनीय' कर्मके उदय होनेसे नाममात्रके लिये कही गई हैं परन्तु हैं उपचारमात्र क्योंकि घातिया कर्मोके नाश होनेसे वे अपना कार्य करनेमें समर्थ नहीं हो सकती अतएव वे किंचितमात्र भी पीड़ा नहीं दे सकतीं । वे अत्यन्त निर्बल केवल कहने मात्रकी हैं। इस प्रकार अलग-अलग गुणस्थानों में परिषहोंका उदय बतलाया । सो ही मूलाधार प्रवोपकमें लिखा है। मिथ्यात्वाद्यप्रमत्तांतगुणस्थानेषु सप्तसु । सर्वे परीषहाः संति ह्यपूर्वकरणे सताम्॥१६॥
PAPARICHAMPAIRepeap
१. वेदनीय कर्म मोहनीय कर्मफे उदय होने पर ही अपना काम करता है। मोहनीय कर्मके नाश हो जाने पर वेदनीय कर्म कुछ
काम नहीं कर सकता इसीलिये तेरहवें गुणस्थानमें सब परिषहोंका अभाव है। तत्वार्थसूत्र में जो 'एकादश जिने' सूत्र लिखा है उसका भी यही अर्थ है कि भगवान् जिनेन्द्र देवके बाकोको ग्यारह परिषह भी नहीं हैं। यह अर्थ इस प्रकार निकलता है 'न। दश अदश' । अर्थात् दशके अभावको अदश कहते हैं। 'एकेन सह न दश एकादश' अर्थात् एकके साथ दशका अभाव अर्थात् ग्यारहके अभावको एकादश कहते हैं । जिनेन्द्र भगवान् के ग्यारह परिषहोंका अभाव है। भगवान जिनेन्द्रदेवके वातिया कर्मोके नाश होनेसे ग्यारह परिषह तो अपने आप नष्ट हो जाती है। वेदनीय कर्मके उदयसे होने वाली ग्यारह परिषहोंका निषेध इस सूत्रने कर दिया । इस प्रकार भगवान् अरहवदेवके समस्त परिषहोंका अभाव सिद्ध हो जाता है।