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________________ सामर [३२] २६ - चर्चा उनतीसवीं ऊपर जो बाईस परिषह बतलाई है वे मुनिराज के एक समयमें सब उदयमें आती है या कुछ कम भी उदयमें आती हैं । समाधान – मुनिराजके एक समय में इन बाईस परिषहोंमेंसे उनईस परिषह उदयमें आ सकती हैं। तीन परिवह उदयमें न आनेका कारण यह है कि शीत, उष्ण इन परिषहोंमेंसे किसी एकका ही उदय रहता है। दोनोंका उदय एक साथ नहीं हो सकता । जहाँ उष्णता है वहाँ शोत परिषह नहीं होती हे और जहाँ शीत वहाँ उष्ण परिषद्का अभाव रहता है। इस प्रकार इन दोनों परिषहोंमें से कोई एक परिषह होती है । तथा चर्या आसन शय्या इन तीनोंमेंसे कोई सी एक परिषह हो सकती है। जब मुनिराज चलते हैं तब आसन और शाका अभाव है । जब आसन परिवह है अर्थात् वे विराजमान हैं तब शथ्या और चर्याका अभाव है और जब शय्या है अर्थात् वे सो रहे हैं तब चर्या और आसनका अभाव है इस प्रकार एक मुनिराजके एक समय में इन तीनों परोषहोंमें से कोई एक परिषह हो सकती है। इस प्रकार एक समयमें एक मुनिराज के उनईस परिषह ही हो सकती हैं सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है- एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतेः । यही बात मूलाधार प्रदीपकमें लिखी है- एकस्मिन् समये ह्य कजीवस्य युगपद्भुवि । परीषहाः प्रजायन्ते ऽगिनां चैकोनविंशतिः ॥ १६७॥ मध्ये शीतोष्णयो नमेक एव परीषहः । शय्याचर्यानिषयानां तथैकः स्यानचान्यथा ॥१६८॥ इस प्रकार एक समय में एक मुनिराजके अधिकसे अधिक उनईस परिषह ही उदयमें आती हैं। ३० चर्चा- तीसवीं ये ऊपर लिखी परिवहें कौन-कौन से गुणस्थानमें होती हैं ? समाधान -- मिथ्यात्व, सासावन, मिश्र, असंयत, वेशव्रत, प्रमत्त, अप्रमत्त इन सातों गुणस्थानोंमें पहले कही हुई बाईसों परिषहोंका उदय होता है । अपूर्वकरण नामके आठवें गुणस्थानमें अदर्शन परिषहको छोड़कर [२]
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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