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मसार
२८-चर्चा अठाईसवीं कर्मोके आस्रवको रोकनेके लिये और कर्मोको निर्जरा करनेके लिये मुनिराज बाईस परिषहोंको जीतते चर्चासागर हैं उन परिषहोंके नाम ये हैं-शुधा, तृषा, पोत, उष्ण, देशमशक, नान्य, अरति, स्त्री, चर्या, आसन, शय्या, [३१] आक्रोश, बघ, याचा, अलाभ, रोग, तृष्णस्पर्श, मल, सरकार, प्रज्ञा, अज्ञान, अदर्शन । ये बाईस परिषह बतलाई हैं सो इन परिषहोंमेंसे कौन-कौन परिषह किस-किस कर्मके उदयसे होती है ?
समाधान-प्रज्ञा और अज्ञान ये वो परिषह ज्ञानावरण कर्मके उदयसे होती है, अवर्शन परिषह वर्शन मोहनीय कर्मके उदयसे होती है। अलाभ परिषह अन्तराय कर्मके उदयसे होती है। नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषधा, आक्रोश, याचा, सत्कार, पुरस्कार ये सात परिषह चारित्रमोहनीय कर्मके उदयसे होती हैं । तथा चाकोको क्षुषा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श, मल ये ग्यारह परिषह वेवनीय कर्मफे उदयसे होती हैं। सो ही मोक्षशास्त्र वा सस्थार्थसूबमें लिखा है
ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने। दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ। चारित्रमोहे नाग्न्यारति स्त्रीनिषद्याक्रोशयाञ्चासत्कारपरस्काराः। वेदनीये शेषाः॥-अध्याय ९ सूत्रसंख्या १६ ।
यही बात मूलाचारप्रदीपकको बारहवीं संधिमें लिखी है। ज्ञानावरणपाकेन प्रज्ञाज्ञानपरीषहो । दर्शनाभिधमोहोदयेनादर्शनसंज्ञकः ॥१६२॥
लाभान्तरायपाकेनस्यादलाभपरीषहः। नाग्न्यभिधानिषद्या चाकोशो याञ्चापरीषहः॥१६३॥ । स्यात्सत्कारपुरस्कारो मानायकषायतः । अरत्यारतिनामा वेदोदयास्त्रीपरीषहः ॥१६॥
वेदनीयोदयेनात्र क्षुत्पिपासापरीषहाः। शीतोष्णाख्यो तथा दंशमशको हि परीषहः ॥१६॥ शय्या चर्या बधो रोगःतृणस्पर्शी मलाह्वयः । एकादश इमे पुंसां प्रजायंते परोषहः ॥१६६||
इस प्रकार और भी अनेक शास्त्रों में लिखा है। १. माग्न्य, निषद्या, आक्रोश, यांचा सत्कार, पुरस्कार ये मान कषायके उदयसे होतो हैं। अरति परिषह अरति कषायके उदयसे
होती है और स्त्री परिषह वेद कर्मके उदयसे होती है । इस प्रकार सात परिषह चारित्रमोहनीय कर्मके उदयसे होती हैं।