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सागर १०]
- चारजनामचा
इस प्रकार यह जप करनेकी विधि बतलाई है सो समयानुसार इस विधिके अनुसार जप करमा चाहिये।
२७-चर्चा सत्ताइसवीं यदि जप करते समय किसी कारणसे विघ्न आ जाय तो उसका प्रायश्चित किस प्रकार करना चाहिए ?
समाधान-स्नान कर धोती पट्टा वो वस्त्र पहनकर सदाचारपूर्वक जप करनेके लिये बैठना चाहिये। और उस समय इतनी बातोंका त्याग कर देना चाहिये । जो अपने व्रतोंसे भ्रष्ट हो गया है उसका तथा शून-है का देखना, इन दोनोंके साथ बात चीत करना इन दोनोंके वचन सुनना, छींक लेना । यदि जप करते समय ये ऊपर लिखी बातें हो जाये तो उसी समय जप छोड़ देना चाहिये और फिर आचमन और षडंग-छह अंगोंसे सुशोभित प्राणायाम कर बाकी बचे हुए अपको अच्छी तरह करना चाहिये। यदि आचमन और प्राणायाम न हो सके तो भगवान जिनेन्द्र देवके दर्शन कर पीछे जप करना चाहिये । भावार्थ--जपके ऐसे विघ्नोंको शुद्धि । आचमन दा प्राणायामसे होती है। यदि आचमन व प्राणायाम न बन सके तो भगवान के दर्शन कर शव कर लेनी चाहिये । विघ्न आ जाने पर बिना शुद्धि किये जप नहीं करना चाहिये । सो ही धर्मरसिक प्रन्यमें लिखा है। बसच्युतान्त्यजातीनां दर्शने भाषणे श्रुते । क्षतेऽधोवातगमने ज भने जपमुत्सृजेत् ॥३३॥
प्राप्तावाचम्यते तेषां प्राणायामं षडंगकम् ।
कृत्वा सम्यक् जपेच्छष यद्वा जिनादिदर्शनम् ॥ ३४ ॥ इससे सिद्ध होता है कि छींक अधोवात आदि विघ्न आ जाने पर प्राणायाम आचमन वा जिनदर्शन कर फिर बाकीका जप पूर्ण करना चाहिये ।
जो श्रावक जप करते समय प्रमादी होकर ऊँघते हैं नोंदका मोका लेते हैं अथवा बार-बार उवासी I लेते हैं अथवा और किसी प्रकारका प्रमाव करते हैं उनका जप करना न करनेके समान है ।
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