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________________ चासागर .३४] SaaShTARA- अदर्शनं विना कविंशतिः स्पः परिषहाः। विंशतिश्चानिवृत्तौ हि विनारतिपरीषहान् ॥ १७० ।। व शुक्लध्यानेन तत्रव प्रनष्टे वेदकर्मणि । स्याख्ये परीषहे नष्ट तस्य रेकोनविंशतिः॥१७१॥ ततो मानकषायस्य क्षयात्तत्रैव वा शमात् । नाग्न्यनाम निषयाख्याक्रोशयांनाणगिहाः । । सत्कारादिपुरस्कारश्चामीभिः पंचभिर्विना। अनिवृत्त्यादिषु क्षीणकषायांतेषु निश्चितम् ॥ १७३ ।। गुणस्थानचतुष्केषु चतुर्दशः परिषहाः । छद्मस्थवीतरागाणां भवन्त्यल्पासुखप्रदाः ॥१७॥ नष्टे घातिविधौ क्षीणकषाये च परिषहाः। प्रज्ञाज्ञानाह्वयालामा नश्यति घातिघातिनः॥१७५॥ । केवलज्ञानिनां वेदनीयाख्यविद्यमानतः । उपचारेण कथ्यतेऽत्रैकादशपरिषहाः ॥१७६॥ । घातिकर्ममलापायात्स्वकार्यकरणेऽक्षमाः। दातुदुःखमशक्ताश्च विगतांतसुखाश्रयात् ॥ मोक्षशास्त्रमें भी यही बात लिखी हैसूक्ष्म साम्परायछद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश । यकादश जिने। वादसांपराये सर्वे। अध्याय ९ सत्र सं० १०-११-१२ ॥ ३१-चर्चा इकत्तीसवीं चारों गतियोंमें रहने वाले जीवोंके किस-किस परिषहका उदय है अर्थात् चारों गतियों से प्रत्येक मतिमें किस-किस परिषहका उदय है। समाधान--चारों गतियोंमेंसे नरकमें रहनेवाले नारको जोवोंके तथा तियंच गतिमें रहने वाले तिर्यचों। के समस्त परिषहोंका उदय है और वह भी अत्यन्त तोव, अत्यन्त घोर और सबसे अधिक है । तथा देव गतिके १. बारहवें गुणस्थानमें 'डनीय कर्मका अभाव हो जाता है इसलिये वहाँ भी उपचार मात्रसे ही परिषहोंका उदा. । य -asiara
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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