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________________ वर्षासागर 1408 Swa बतलाया । जिसप्रकार बेर, अड़ी, गुड़ और मधुके फूल जुवे जुड़े हैं परंतु उन सबके मिलनेसे मद्य बन जाता है। पहले उन सबमें मद्य बनने की शक्ति थी वही शक्ति अथ मिलनेसे प्रगट हो गई और मद्य बन गया उसीप्रकार पच्चीस तत्त्वों में आत्मा बननेकी शक्ति है उन सबके मिलनेसे आत्मा बन जाता है । इसप्रकार अनेकप्रकारके विपरीत कथनको कहनेवाले सांख्यमतके शास्त्र बनाये । उसीने पातंजलि मतके शास्त्र बनाये । उसमें हठयोग, पवनका साधन और शुद्ध ध्यानाविकका निरूपण किया। तदनंतर श्रीशीतलनाथ तीर्थंकरके समय में शालि ब्राह्मणने दश प्रकारके कुदानोंकी स्थापना की और उनकी परिपाटी चलानेके लिये ऐसे दान देनेका विधान करने वाले ग्रंथ बनाये। उनमें अपना स्वार्थ सिद्ध करने और आजीविकाकी परंपरा चलाने के लिये ब्राह्मणोंको गोदान, सुवर्णदान आदि अनेक प्रकारके दान देना बतलाया । सबका फल स्वर्गे मोक्ष बतलाकर उन बानोंको पुष्टि की। तथा इसप्रकार लोगोंको ठगनेका उपाय बनाकर उसकी परंपरा चलाई । इसप्रकार उसने जैनधर्मके अत्यन्त विरुद्ध कथन निरूपण किया और लोगोंको खूब ही भुलावा दिया । एक धारणयुगल नामका नगर था उसमें अयोध नामका राजा राज्य करता था उसकी दसो नामकी रानीसे सुलसा नामकी अत्यंत रूपवती पुत्री हुई थी। राजाने उसका विवाह करनेके लिये स्वयंपर रचा था और अनेक राजा बुलाये थे। उसमें सगर आदि अनेक राजा आये थे । उनमें एक मघुविंगल नामका राजा भी आया था। राजा मधुपिगलने सुलसाके पास अपनी भूआ ( फफी ) भेजी और कहलाया कि तु मधुपिंगलके कंठमें वरमाला डालना । उस फूफोने मधुपिंगलका बहुत यश गाया। सुलसाने उसका भारी यश सुनकर उस फूफोकी बात स्वीकार कर ली । इधर सब राजाओं में मुख्य राजा सगरने भी सुलसाको रूप संपदा देखकर उसके साथ विवाह करनेकी इच्छा की । तथा उसने ऊपर लिखा हुआ मधुपगल और सुलसाका विचार भी सुना । तब राजा सगरने अपने मंत्रियोंसे विचार किया। उस राजाके एक विश्वभूति नामका पुरोहित था। जो सामुद्रिक शास्त्रके जानकारोंमें मुख्य था । उन मंत्रियोंको सलाहसे उसने एकांत में बैठकर एक नवीन सामुद्रिक शास्त्र बनाया । उसमें मधुपिंगल मांजार नेत्रोंको देखकर उसको ठगनेके लिये उसके बहुत दोष दिखलाये । तथा राजा सगरके चिह्नोंके बहुत गुण बतलाये । ऐसा नवीन जाली ग्रन्थ बनाकर उसे धूऍमें धूसरित कर पुराने वस्त्रमें बांधकर एक [40
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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