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________________ वर्षासागर लोहेके संदूक रक्खा और उसे स्वयंवर भूमिके निकटका पृथिवीमें एक गढा सोवकर संदूक समेत गाड़ दिया। । ऊपरसे वह गढा मिट्टीसे भरकर एकसा कर दिया। यह सब काम उसने इस प्रकार किया जो किसीको मालूम नहीं होने दिया तदनंतर जब सब राजा इकट्ठे हुए तब किसी अपरिचित पुरुषसे वह अन्य मंगवाया और उस पुरोहितने सब राजाओं के सामने उस ग्रन्थका व्याख्यान किया। उसमें सगरके चित्रोंका बहुत कुछ शुभ निरूपण किया और मधुपिंगलके बिल्लोकेसे नेत्रोंका वर्णन करते हुए बहुतसे दोष दिखलाये। यह सब कथन वहाँ बैठे हुए सम राजाओंने सुना, राजा मधुपिंगलने सुना । राजा मधुपिंगल अपने बुरे चित्रोंको सनकर तथा अपने शरीरमें भाग्यहीन परिद्रियोंके लक्षण जानकर उदास होकर वहाँसे उठ गया। उसने सलसाके साथ विवाह करनेको इच्छा छोड़ दो और विरक्त होकर जिनदोक्षा धारण कर ली। वह प्रतिदिन घोर तप करने लगा। जिससे उसका शरीर बहुत ही कृश हो गया। किसी एक दिन विहार करते-करते वह एक स्थानपर पहुंचा वहाँपर अनेक सामुद्रिक शास्त्रको जाननेवाले विद्वान् बैठे थे। एक सामुद्रिक शास्त्रीने इसके लक्षण देखकर कहा कि इस सामुतिकशास्त्रको भी विषकार है। क्योंकि देखो इसके शरीरमें कैसे पुण्याधिकारियोंके लक्षण हैं परंतु यह कंसा कष्ट सह रहा है। उस शास्त्रोको यह बात सुनकर दूसरा शास्त्री कहने लगा। कि क्या तुझे मालूम नहीं है कि सुलसाके स्वयंवरमें इस मपिंगलको ठगनेकेलिये एक नया सामुद्रिक शास्त्र । बनाया गया था और राजा सगरने यह सब प्रपंच रचकर सुलसाके साथ विवाह किया था। इसके बिल्लीके नेत्रोंमें बहुतसे दोष निकाले थे। परंतु यह भोला है उस समय इसने कुछ समझा नहीं, बिना ही समझे यहाँसे। निकलकर उदास होकर दीक्षा ग्रहण कर लो। उन दोनों शास्त्रियों की बात मधुपिंगलने भी सुनी और सुनते ही क्रोधको प्राप्त हुआ। अंतमें वुःखसे मरकर असुर जातिके देवोंमें महाकाल नामका असुर हुआ। उसने ! अपने कुअवधिज्ञानसे राजा सगरके पहलेके सब समाचार जान लिये उसने जो ठगाई को थी सो भी सब जान । ली । तया उससे शत्रुता धारण कर वह उसके नाश करनेका उपाय सोचने लगा। पहले क्षारफदंव ब्राह्मणके पुत्र पर्वतका वर्णन कर चुके हैं पर्वतका नारदसे विवाद हुआ या राजा वसु को साक्षी बनाया था। राजा वसु मूठ बोलनेके कारण सिंहासन सहित पृथ्वीमें वंसकर नरक पहुंच चुका था , । और उस सूक्तिमति नामके नगरसे लोगोंने उस पर्वतको निकाल दिया था वहाँसे निकाल कर पर्वत ब्राह्मण , F ore A bor . Thana
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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