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________________ सागर ५०८ ] wesweswes ने राजा पर्वतको भी बहुत दुःखी किया। इससे चिढ़कर राजा पर्यंतने इसके मारनेका उपाध सोचा । परन्तु रुके पास बहुत-सी विद्याएँ थीं इसलिये वह मार न सका । तब राजा पर्वत ने अपनी कन्या पार्वती से पूछा कि ये fear किसी समय इससे दूर भी रहती हैं या सदा इसके पास रहती हैं। पार्वतीने यह बात रुद्रसे पूछो । रुद्रने कहा कि ये विधाएँ संभोग के समय तो दूर रहती हैं और किसी भी समय दूर नहीं रहतीं सदा पास रहती हैं। पार्वतीने यह बात जानकर राजा पर्वतसे कह दो । तदनंतर किसी एक दिन राजाने उस रुद्रको संभोग करते समय नग्न अवस्थामें ही मार डाला । अपने स्वामीका मरना देखकर उन विद्याओंने अनेक उपद्रव करना प्रारंभ किया और ये सबको पीड़ा देने लगों । तब सब लोगोंने प्रार्थना की कि हे देवियाँ अब शांत हो जाओ । अब क्षमा करो। तब उन सब देवियोंने कहा कि "इस राजाने जिस अवस्थामै सात्यकोको मारा है, उसी आकार को उसकी मूर्ति बनाकर स्थापना करो और फिर उसकी पूजो तब शांति होगी । अर्थात् योनि मैथुनाकार स्तंभित लिंगको मूर्ति बनाकर जो तब सुख मिलेगा अन्यथा दुःख ही पाते रहोगे । देवियोंकी यह बात सुनकर राजा प्रजा सबने ऐसा ही किया । उनको देखकर भेडियाधसान के समान और लोगोंने भी ऐसे ही रूपकी मूर्ति बनाकर स्थापना की और लोग उसे पूजने लगे । सबसे शिवकी स्थापना प्रारंभ होने लगी । यह सब कथन उत्तरपुराण आदि अनेक शास्त्रों में लिखा है । विशेष बहाँसे जान लेना । यहाँ अत्यंत संक्षेपसे लिखा है । रुद्र ग्यारह होते हैं सो इस कालमें भी ग्यारह हुए हैं परन्तु यह शिवको स्थापना अंतके रुद्रसे हुई है । यह सब कालदोष है । इसी कालदोषसे कितने ही स्वार्थी ब्राह्मणोंने अपनी आजीविका के लिये अनेक प्रकारके स्वरूप बनाकर कितने ही निद्य देवताओंकी स्थापना की है तथा लोगों को ठगनेके साधन बनाकर कितनी हो विपरीत बातें फैलाई हैं सो सब प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं। वे सब सम्यग्दृष्टियोंके लिये श्रद्धान, ज्ञान या आचरण करने योग्य नहीं हैं । सर्वत्र हेय हैं । आगे थोडेसे कुशास्त्रों की उत्पत्ति लिखते हैं । ऋषभदेव के पुत्र महाराज भरत थे तथा भरतका पुत्र मारीच था । उसने मिथ्यास्य कर्मके उदयसे मुनिपदसे भ्रष्ट होकर सांख्य शास्त्र बनाया। उसने पृथ्वी आदि पच्चीस तत्वोंसे आत्मा बनता है ऐसा ०८
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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