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बासागर
पूजा पाठ रचै बहु जोर । कही तासमें नूतन ओर । सत्रहसौ तिहोत्तर साल। मत थाप्यो ऐसो अघजाल ॥ ३३ ।। लोगनि मिलिकै मतो उपाय। तेरह पंथ नाम ठहराय । तिनमें नृप मन्त्री मिलि एक । बांधी नये पंथकी टेक ॥ ३४॥ दे दै खिदमत पंथ बधायो । नहिं भायो ताही डरपायो । कछु लालच कछु डरतें साह । भयो गडरियाके परवाह ॥ ३५ ॥ आदि सेति चलि आयो धर्म । मूढ न समझे ताको मर्म। इहि विधि फैल्यो नगरनि माहि। उत्पति कही झूठ कछु नाहि ॥३६ ॥
. .. . दोहा मानत उस ही ग्रंथको अर्थ करत कछ और। धर्म अधर्म गिने नहीं चलत अकलिके जोर ।। इस प्रकार इसको उत्पत्तिका वर्णन किया। आगे इसके श्रद्धान और आचरण कहते हैं ।
छन्द पद्धरी सिद्धि श्री सांगानेर थान । अनेक वोपरमा जोग जान । भाईजी श्री मुकुन्ददास । फुनि दयाचन्द्र महस्यघमास ॥१॥ छाजू कल्ला सुन्दर सुषह । फुनि लेहि विहारीलाल जेहि । सिन जोग्य सुपत्री जानि लेहु। कामातें सब मिलि लिखत एह ॥२॥ हरिकिसनदास चिंतामणीस। देवी फुनिलाल निशा धणीस । जगन्नाथ केन श्रीशब्द जाति । लिखी सबै साहि मिली हुमानि ॥३॥ ये बात लिखी हम सप्त वीस । सो तुमहू करियो विश्ववीस। ताकी तफसील कहूँ सुनाय । सु अब सुन लीजो चिक्षलाय ॥४॥