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चर्चासागर
पहले केसरकी मुबहु बात । आगे जिन चरननिको लगात। सो हम यह मेटि दई सुचाल । तुमह मिलि ऐसे करहु लाल ॥ ५ ॥ फुनि पूजा बैठे करत कोय । सो अब ऊभै ही करहु लोय । चैत्यालयमें रहतो भंडार । सो हु मति राखहु अब लगार ॥ ६ ॥ प्रभुकों जलौट ऊपर धराय। ढालत कलशा विधिवत बनाय। सो विधि तजि अब इमिकरि सुजान।प्रतिमाको राखि विराजमान॥७॥ ज्योंकी त्यों वेदी माहि मीत । प्रभु आगे कलश ढलोत चित्त । मनमें अजहूँ यह रहत नीत । तजि वेगि दीजिये एह रीत ॥८॥ पूजा शांतिक फुनि क्षेत्रपाल। नवग्रह पूजनकी हुती सुचाल । सो हूँ अब तो सब छोडि दीन्ह ।यो कपन योह मख रचि कीन्ह ॥६॥ देवलमें खेलत जुआ लोय । पंखेत लेते पवन कोय । आरीतें मांझ घला घलात । सोह सब तजियो क्षिप्र भ्रात ॥ १०॥ प्रभु माला लेते हरषि गात । देवलमें भोजक आत जात । पुनि पनही देवल माझि मान । एतीनवात त्यागो सुजान ॥ ११ ॥ जपिके अठोतर लवंग आदि । पहुंचारे मधि धरते सुसादि । प्रभुको चढावत हैं भविक लोय।सो हू तजियो साहसी होय ॥ १२ ॥
छन्द चाल जल प्रभु पूजनको ल्यावन । भोजकपै राछ मजावन । ए विधि कर लेहु महाजन । आपसहीमें मिलि साजन ॥ १३ ॥ न्हावण घरघर सू लावें । भोजक सो नाहि सुहावै।। अब एक महाजन जावो। इक ही घर सेती ल्यावो ॥ १४ ॥