SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 फिरि कामामें चलि परयो ताहीके अनुसारि । रीति सनातन छांडिके नई गही अघकारि यासागर १५ .. कितै महाजन आगरै जात करण व्योपार । बनि आये अध्यातमी लखि नूतन आचार ॥ __ सोरठा से मिलिके दिनरात छाने चर्चा करत नित।प्रगट भए जिह भांति जा नगरीसों विधि सुनो। चौपाई जयपुर निकट वसै इक और । सांगानेर आदितें तौर। सर्व सुखी ता नगरी माहि ।श्रावक तिनमें सुवसि बसाहि ॥२७॥ बड़े बड़े चैत्यालय जहां । ब्रह्मचारि इक निवसे, तहां। अमरचंद्र है ताको नाम । शोभित सकल गुणनिको धाम ॥२८॥ ताके डिंग मिलि आवत पंच । कथा सुनत तजिकै परपंच । ।, तिनमें अमरा भवसा जाति। गोदीका यह व्योक कहात ॥ २६ ।। धनको गर्व अधिक तिन धियो। जिनवाणीको अविनय कियो। तब वाको श्रावकनि विचारि । जिनमंदिर” दियो निकारि ॥३०॥ जब उन कीन्हों क्रोध अनन्त । कही चलाऊ नृतन पंथु । तब उनमें अध्यात्म कितेक । मिले भये सब द्वादश एक ।। ३१ ।। उनको कछु इक लालचे देय। अपने मतमें आने लेय। लालच ठानि ठानि मनमांहि । मूढ मिले कछु समझे नाहि ।। ३२ ॥
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy