SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ IR किया और इस प्रकार हलिया मतसे भी अपना भिन्न मत और गच्छ स्थापन किया उनका मत तेरहपंथी साधु कहलाया और उसकी माननेवाले तेरहपंथी साघु कहलाये। उन्होंने अपना नवीन ढाला बनाया है तथा और भी कई प्रकारसे अपना मत पुष्ट किया है सो वह भी सम्परशानियों को श्रद्धान ज्ञान या आचरणके योग्य नहीं है । यह सब विपरीत मिथ्यात्व है । इस प्रकार भीमपंथीको उत्पत्ति बतलाई। प्रश्न--तेरहपंथी तो दिगम्बराम्नायमें होते हैं इन ढूंढ़ियाओंमें तेरहपंथी कैसे ? उत्सर--इनमें भी तेरह साधु मिले थे इसलिए उनको माननेवाले तेरहपंथी साधु कहलाते थे। वह मत भीष्मपंथी ही रहा। प्रश्न-दिगम्बर आम्नायर्मे जो तेरहपंथीकी आम्नाय है सो उसको उत्पत्ति किस प्रकार है तथा उसका श्रद्धान ज्ञान आचरण ठीक है का नहीं ? समाधान-~-एक भाषा छन्दका नाटक संग्रह ग्रंथ है उसमें इसको उत्पत्तिका वर्णन लिखा है। उससे लेकर यहां थोड़ा-सा लिखते हैं । यथा-- छन्द चौपाई भाषा आदिपुरुष यह जिन मति भाष्यो । भवि जीवनि नीके अभिलाष्यो। पहले एक दिगम्बर जानो । तातै श्वेताम्बर निकसानो ।। १६ ॥ तिनमें ईकसि भई अति भारी । सो तो सब जानत नर नारी। ताही माँहि रहसि अब करिके । तेरह पंथ चलायो अडिकें ॥ १७ ।। तब कितेक बोले बुधिमान । उपज्यो पंथ यह केही थान । किहि सम्मत कारण कहु कौन । सो समुझाय कहो तजि मौन ॥ १८ ।। वोहा प्रथम चल्यो मत आगरे श्रावक मिले कितेक।सोलहसै तीयासीये गही कितेक मिलि टेक॥ काह पंडितपै सुने किते अध्यातम ग्रन्थ । श्रावक किरिया छोडिके चलन लगे मुनिपंथ ॥ ,
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy