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वर्षासागर [ ४ ]
७५. किसी एक शिष्यने छमछरोका ( वार्षिक प्रतिक्रमणके दिन } उपवास नहीं किया था उसने आहार लाकर गुरुको दिखाकर खानेको आज्ञा माँगी थी सो गुरुने उसकी निन्दाकर उसके भोजनके पात्रमें थूक दिया था परन्तु उस शिष्यने उससे घृणा न की उस जुगुप्साको जीत लिया और गुरुके थूक सहित उस उच्छिष्ट भोजनको खा गया इसी कारण उसको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया ऐसा मानना । ७६. गृहस्थोंको कुदेवोंकी उपासना में दोष न मानना ।
७७. कुदेवोंकी पूजासे भी सम्यक्त्वका घात न मानना ।
७८. कुठेयोंकी पूजा करना गृहस्थोंका कार्य मानना ।
७९. बोलते समय मुखके ऊपर वस्त्रको पट्टी बांधकर बोलना चाहिये उघाड़े मुखसे नहीं बोलना चाहिये ऐसा मानना ।
८०. जहाँ चित्रामको लिखो हुई स्त्रियों हों वहाँ पर साधु न रहें परन्तु व्याख्यानमें सैकड़ों स्त्रियों के पास रहते हुए भी दोष न मानना ।
८१. बाहुबलि साधु अपने अभिमान के कारण पृथ्वीको भरतको पृथिवी जानकर एक अँगूठेके सहारे खड़े रहे । इसलिए उनको ध्यानकी प्राप्ति नहीं हुई ऐसा मानना ।
८२. बाहुबलिके चारों ओर केवलज्ञान फिरते रहा उत्पन्न नहीं हुआ । तब ऋॠषभवेनके वचनसे भरतने आह्मीसे कहा कि तू अपने भाईको समझा जिससे वह मानरूपी हाथीसे उतरे । तब ब्राह्मीने जाकर समझाया तब वह चारों ओर फिरनेवाला केवलज्ञान बाहुबलीको प्रगट हुआ ।
८३. श्रीमहावीर स्वामी के समवशरण में किसी गोशालामें जन्म लेनेवाला कोतका पुत्र गोशाला आया था उसने आकर भगवानको गालियाँ बीं, बहुतसे निन्दनीय वचन कहे 'रे', 'तू' आदि बुरे शब्द कहकर उसके ऊपर तेजोलेश्या चलाई । जिसको लोकमें मूठ कहते हैं। उस मूठसे वे भगवान मरे नहीं क्योंकि उनका बहुत बड़ा अतिशय था परन्तु रक्तातिसार नामकी व्याधि ( खूनके दस्त ) हो गई ऐसा मानना ।
८४. जिस समय गोशालाने तेजो लेश्या चलाई थी उस समय समवशरणमें दो साधु भगवानका यह ६२
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