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पर्यासागर
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५४. तीर्थरोंका स्वरूप अठारह दोष सहित प्ररूपण करना । ५५. केवलज्ञानीके मूल शरीरसे पांच प्रकारके स्थावर जीवोंके धाप्तका सद्भाव मानना । ५६. भगवानके गर्भ में आनेके समय माताका चौवह स्वप्नोंका देखना । सोलह स्वप्न न मानना । ५७. स्वाँकी संख्या सोलहके बदले बारह मानना। ५८. गंगादेवीके साथ पचास हजार वर्षतक किसी गलियाने भोग किया मानना । ५९. प्रलयकालमें देवता बहत्तर स्त्री, पुरुषोंके जोड़ोंको उठा ले जाते हैं। ६०. चर्मके पात्रमें रक्खे हुए घी, तेल, हींग, जल आदिके खाने-पीनेमें कोई दोष नहीं मानना। ६१. बासे भोजनके भक्षण करने में दोष न मानना, पक्वान्नको निर्दोष मानना। ६२. महावीर स्वामोके दीक्षा लेने के पहले ही उनके माता-पिताकी मृत्यु मानना । ६३. बाहुबलिको मुगलोंका रूपवान कहना तथा बाहुबलिने ही मुसलमान बनाये मानना । ६४. पूरे फलको खानेमें कोई बोल मानना । ६५. युगलिया भो परस्पर ईष्या करके युद्ध करते हैं ऐसा मानना । ६६. शास्त्रोंको अचेतन मानकर उनकी विनय न करना । ६७. तिरेसठ शलाका पुरुषोंके नोहारका सद्भाव मानना । ६८. इन्द्रोंको संख्या सौ न मानकर चौसठ मानना । ६९. यदुर्यशियोंको मांसाहारी मानना । ७०. मानुषोत्तर पर्वतके बाहर तेरह द्वीप तक ऋद्धिधारी साधुओंका तथा विद्याधर आदि मनुष्योंका
गमन मानना । ७१. कामवेयोंको संख्या चौबीस न मानकर होनाधिक मानना। ७२. तीर्थस्थरोंके मोक्ष होनेके बाद देवता उनके मुख मेंसे दाढ़ निकाल कर ले जाते हैं और स्वर्गमें उसको !
[ve पूजा करते हैं ऐसा मानना । ७३. नव प्रवेयकके देवोंका नव अनुदिश तक गमन करना मानना । ७४. नाभिराय और मरुदेवीको युगलिया मानना।