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बासागर ४८७]
३७. देवोंका मनुष्य स्त्रियोंसे भी भोग करना मानना और उनसे पुत्रादिककी उत्पत्ति मानना। एक सुलसा
नामको श्राविकासे किसी देवने भोग किया था और उससे उसके पुत्र उत्पन्न हुआ ऐसा मानना। ३८. चक्रवतियोंके छयानबे हजार स्त्रियों का नियम न मानना । ३९. बाहबलिके शरीरको ऊँचाई सवा पांचसौ धनुष न मानकर केवल पाँचसौ धनुषको मानना। ४०. श्रीमहावीर स्वामीफा म्लेच्छखण्डोंमें भी विहार करना मानना । ४१. चौथे कालमें साधु लोग असंयमियों की पूजा करते थे ऐसा मानना । ४२. देवोंका एक कोश मनुष्योंके चार कोशके बराबर है ऐसा मानना । ४३. तीर्थकर केवली भगवान समवशरणमें वस्त्र सहित दिखाई पड़ते हैं नग्न नहीं ऐसा मानना । ४४. साधुओंको हाथमें दण्डका रखना । ४५. श्रीवृषभदेवकी माता मरुदेवो मिथ्यावृष्टिना श्रो। जब श्रीवृषभदेवने धोक्षा ली थी तब वह उनके
वियोगसे बहुत रोयी थी और रोते-रोते अन्धी हो गई थी परन्तु पीछे समवशरणको देखकर सूझती
हो गई थी ऐसा मानना । ४६. भादेवको हाथो पर बैठे-ही-बैठे फेवलज्ञानका होना । ४७. चांडालादिक नीच कुलों में उत्पन्न होनेवालोंको भी पांच महावतोंका धारण करना मानना । ४८. केसोकुमार जातिके भंगोको भो केवलज्ञान और मोक्षका होना मानना । ४९. श्रीमहावीर स्वामीके समवशरण में चंद्र, सूर्यदेवोंका मूल शरीर सहित धंदना करनेके लिए आना। ५०. पहले स्वर्गका इन्द्र दूसरे स्वर्गमें जाकर इन्द्र होवे और दूसरे स्वर्गका इन्द्र पहले स्वर्गमें आकर इन्द्र
होवे ऐसा मानना। ५१. युगलियोंका शरीर मरने के बाद कपूरके समान खिरता नहीं, पड़ा रहता है ऐसा मानना । ५२. तोर्थङ्कराविक केवलज्ञानियों के निर्वाग गरे बाद उनके शरीरका पड़ा रहना कपूरके समान उड़ना
न मानना । ५३. यदि किसी यतिका मन स्त्रीसेवन के लिए चलायमान हो जाय तो श्रावकोंको उसे स्त्रो देकर उसका
मन स्थिर रखनेमे कोई पाप नहीं है ऐसा मानना ।
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