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तस्मिन् श्रीमलसंघ मुनिजनविमले सेननंदी च संघौ
स्यातो सिंहाख्यसंघी भवदुरुमहिमा देवसंघश्चतुर्थः ।। सागर कियत्येपि ततोऽतीने काले श्वेताम्बरोऽभवत् । द्राविडो यापनीयश्च केकीसंघश्च नामतः॥ -७९ । केकीपिच्छःश्वेतवासः द्राविडो यापनीयकः। नि:पिच्छश्चेति पंचैते जेनाभासाः प्रकीर्तिताः॥ स्वस्वमत्यनुसारेण सिद्धांतव्यभिचारणम् । विरचय्य च जैनेन्द्र मार्ग निर्भेद याति भो ॥४
अर्थ-मूलसंघ तो अनादि निधन है उसके पीछे अर्द्धफाल्कोके द्वारा श्वेताम्बर गच्छ उत्पन्न हुआ। उसके बाद काष्ठसंघ उत्पन्न हुआ। उसके कितने काल बाद श्वेताम्बर धर्म सेवड़ासंघ प्रकट हुआ। तदनंतर प्राविडसंघ, यापनीयसंघ, केकीसंघ प्रकट हुए। केको, श्वेताम्बर, ब्राविड, यापनोय, नि:पिच्छ ये पांचों संघ जैनाभास कहलाये। इनका मायलिंग तो जैनियोंका रहा परन्तु क्रिया आवरण आदि सब शिथिल और होन। बने रहे। इनका श्रद्धान. ज्ञान, आचरण सब मलसंघसे विरुद्ध है इसलिये इनको जैनाभास कहते हैं। इन पांचों जैनाभासोंके आचार्योंने अपनी-अपनो बद्धिके अनुसार अपने सिद्धांतमें दोष उत्पन्न करनेवाले विस बातें निरूपण की और अपने संघको स्थापना की सो सम्मज्ञानियोंको श्रदान करने योग्य नहीं है।
इन सबके पीछे भोपाल नामके नगरमें सिरोज (भेलसा) गांवका रहनेवाला ताराचंद नामका श्रावक था। वह बड़ा मानी, अधोगतिका पात्र, महा मिथ्यात्यो था। किसो एक दिन वह अपने पिताके साथ विवेशके लिये चला । उसके पिताके भगवानको नित्य पूजन करनेका नियम था। इसलिये उसने अपने साथ श्री जिनप्रतिमाजो ले रक्खी यों। मार्गमें प्रातःकाल के समय किसो नदीके किनारे उतरे। पिताने बह प्रतिमाजी और पूजनको सामग्रो आवि सब अपने पुत्र के पास रख दी और स्वयं शौच होनेके लिये बाहर गया। ताराचन्दने ! अपने पिताको अपने मतमें वृढ़ करनेके लिये वे प्रतिमानो और पूजनको सब सामग्रो उस नवीमें अगाध जलमें ।
लो हो। पिताने आते ही सामग्री आदि पूछो तब ताराचन्दने कहा कि तुम्हारे दर्शन और पूजा करनेका दृढ़। नियम है तो भगवान आप आकर मिल जायगे । यदि जिनेन्द्रदेव सच्चे हैं तो वे जलसे निकल कर तुम्हारा धर्म रख लेंगे । हमें भी तो देखना है तुम्हारे भगवान कैसे हैं। ताराचन्दको यह बात सुनकर पिताने अन्न अलका त्याग किया और संन्यास धारण कर मरण किया। पिताके मर मानेपर ताराचन्दने जनको भी उस अगाष
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