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________________ सागर E. ] अलमें डुबा दिया । तदनंतर उसने एक नवीन भाषामें छन्दोमय शास्त्र बनाया। उसमें धर्मका स्वरूप तथा कथाएँ आदि तो जैनधर्मसे मिलती-जुलती लिखों । परन्तु श्रीमंदिरों में विराजमान जिनप्रतिमाओंको अचेतन और जडरूप बतलाकर उनका निषेध किया तथा कितने ही मन्दिरोंमेंसे प्रतिमाएँ उठवा व और उन वेदियों में बड़ी विनयके साथ केवल शास्त्र विराजमान किये। वे लोग नित्य उन शास्त्रोंकी पूजा करने लगे, उनको बाँचने लगे और उन पर नैवेद्य चढ़ाकर उसका प्रसाद बाँटने लगे और खाने लगे। उन्होंने जिनप्रतिमाके दर्शन, वंदन, भक्ति करने लगे । यदि कोई पूजन आदिका निषेध किया और समाज केवल शास्त्रोंकी हो पूजा, उनसे इसका कारण पूछता है तो ये कहते हैं कि हमारे यहाँ एक तारणस्वामी हुए हैं उन्होंका चलाया हुआ यह धर्म है। ये तारणपंथी लोग भैसके सींग समान हैं अथवा रोडोका मलिन पृथ्वीके समान है। भैंसके सींग और रोडोको मलिन पृथ्वी ऊपरको नहीं जाती । टेडो ही जाती है। कोमल पृथ्वी हो ऊपरको आती है। इस प्रकार उनके लिये भ्रष्ट दृष्टांत दिया जाता है। जैसे वे हैं वैसे ही उदाहरणके द्वारा उनको उपमा मिली है । जैसे लोकमें कहावत है "जैसी शीतला देवी वैसे ही उसको गधेको सवारी ।" लिखा भी हैयादृशी शीतला देवी तादृशो खरवाहनः । प्रश्न- यहाँ शीतला का उदाहरण दिया सो इस उदाहरणसे क्या प्रयोजन है ? उत्तर -- स्कंधपुराण में लिखा है नमस्ते शीतला देवि सूर्यालंकारमस्तके । सस्मिता च लंबोष्ठी च रासभस्था दिगम्बरी ॥ करे तु मार्जनोपेता अर्थात् जिसका मस्तक सूर्यसे सुशोभित हो रहा है, जो मंद-मंद हँस रही हैं, जिसका होठ लम्बा है, जो गधेपर बैठी है, नग्न है और जिसके हाथमें बुहारी है। ऐसी शीतला देवी है उसके लिये नमस्कार हो । इसका अभिप्राय यह है कि जैसो वह देवी थो वैसी ही उसको सवारी मिली। उसी प्रकार जैसे वे तारणपंथी थे वैसा ही उनके लिये भैसके सींगका उदाहरण दिया गया है। [ ४८०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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