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। बतलाया, गुरुओंको पीछी रहित बताया इस प्रकार उसने संघको नाश करनेका विचार किया। इस प्रकार
नि:पिछि मत स्थापन हुआ । इस समयमें भी कितने ही लोग बिना समझे मुनिको पोछी रहित हो मानते हैं । वापर
पौछीको परिग्रह कहते हैं । सो उनको भी मूलसंघसे बाह्य समझना चाहिये । सो हो लिखा है[ wwe ] तत्तो दुसएसीदे महराए माहुराण गुरुणाहो। णामेण रामसेणो णिपिच्छं वण्णयं तेण । सम्मत्तपयडमिच्छत्तं कहियं जंजिणंदविवेसु। अप्पयर णि?पसु य ममत्तबुद्धिए परिवसणं ।।।
ऐसो मम दो भु गुरु अवरो गरियोति चित्तपरिरमणं ।
संग गुरु कुलाहिमाणो इयरेसु विभंगकरणं च ॥ इस प्रकार नि:पिच्छ मतको उत्पत्ति बतलाई ।
श्रीमहावीर स्वामीके अठारहसौ वर्ष बाद दक्षिण वेशके पुस्खल नगरमें बारिचन्दमुनिने भिल्लुसंघको स्थापना की। उसने उसमें सोनीय गच्छ स्थापन किया। प्रतिक्रमणमें तथा अन्य किसने हो क्रिया चरणोंमें उसने मूलसंघसे विपरीत बातें निरूपण की । सो ही लिखा है-- दक्खिणदेसे विझे पुर कलए चारचंद मुणिणाहो । अट्ठारसएतीदे मिल्लुघं संघ परवेदी ।
सो णियगच्छं किच्चा पडिकमणं तय मिण्णकरि आऊ ।
वण्ण वण्ण विवाई जिणमग्गं सुझुणिहरेदे ॥ इस प्रकार भिल्लुसंघको उत्पत्तिका वर्णन किया।
इस प्रकार पंचमकालमै जनमतमें भी विपरीत मिथ्यात्वको उत्पत्ति हुई है। उन सबमें उनके स्थापन । । करनेवालोंने अपनी-अपनी बुद्धिके अनुसार सिद्धांताविक शास्त्रों में मूलसंघसे विरुद्ध विपरोत बातें निरूपण को हैं। सोही नीतिशतकमें
पूर्व श्रीमूलसंघस्तदनु सितपटः काष्ठसंघस्ततो हि
तत्राभूद्र द्राविडाख्यं पुनरजनि ततो पापुलीसंघ एकः ।
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