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________________ वर्षासागर [ ४७२८ ] सिरि पासनाह तिथे सरऊ तीरे पलास णयरत्थो । पहियासवस सिस्सो पहासदो बुद्धिकित्तिये ॥ इसी पंचकालमें महाराज विक्रमके परलोक जानेके एकसौ छत्तीस वर्ष बाद सोरठ नामके देशके बल्लभीपुर नगर में अर्द्धफाल्समना हुआ था । वही संशय मिथ्यात्व है । सो हो लिखा है एयसया छत्तीसे विक्कम रायस्स मरणपत्तेसु । सोरट्ठे वलहीए उप्पणो सेवडो संघ ॥ विपरीत मिध्यात्वकी उत्पत्ति आगे बतलावेंगे । श्री ऋषभदेवके पौत्र मारोजको आदि लेकर सब तीर्थंकरोंके समय में अनेक तापसियोंने विनय मिथ्यात्व चलाया है । सो ही लिखा है सव्वेसु तित्थेसुप वेणइयाणं समुज्झ चौ अस्थि । जडा पुंडीय सिस्सा मिहिणो ण गायके इम ॥ दु गुणवंतं विय समया भत्तिण सव्वदेवाणं । णमण दंडो व जणेयरि कलियंते हि मूढे हि ॥ उसह जिण पुतपुतो मिच्छत्सकलंकि दो महामोहो । सव्वेसिं भट्ठाणं धुरि गुणी उपत्तसरीहिं ॥ श्रीमहावीर स्वामी तीर्थमें बहुश्रुतके उपासकके संघकी सीमा ऐसे मस्तक पूर्ण नामके आचार्यने इस लोक अज्ञान मिथ्यात्व अर्थात् म्लेच्छ वा मुसलमान आदि यवनोंका मत तथा शून्यवादियोंका मत स्थापन किया है । इस अज्ञान मिध्यात्वमें अज्ञानताकी मुख्यता है । ये लोग मुक्त जीवके भी ज्ञान नहीं मानते। उसे भी अज्ञान रूप ही मानते हैं । ये लोग भव-भवमें जोवोंका उत्पन्न होना और मरना नहीं मानते । ये सब जोव शुद्ध बुद्ध, कर्ता और एकरूप हैं तथा यह लोक सब शून्य है ऐसा वर्णन करते हुए अज्ञान पंथ स्थापन किया है। इस प्रकार अज्ञान मिथ्यात्थकी उत्पत्ति है। सो ही लिखा है सिरि वीरनाह तिथे बहुसुदोपाससंघगणितीमो । मक्कड पूरण साहू अण्णाणं भासिए लोए ॥ अादी मुक्खाणं णस्थिति मुत्तजीवाणं । पुणरागमणं भमणं भवे भवे णत्थि जीवस्त || TRUTES
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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