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चर्चासागर
करते हैं जो अपने माता-पिताके मरण होने के बाद जल, तिल आदि पदार्थोंसे सर्पण करते हैं, श्राद्ध करते । ई है, सिवान करते हैं। इस्पावि ब्राह्मणोंके बहकाये हुए जो बिना विचारे कार्य करते हैं सो सब विपरीतमिथ्यात्व है।
जो बेव, कुदेव, गुरु, कुगरु, धर्म, कुधर्म, पात्र, अपात्र आदि सबको एकसा मानकर सबको एकसा विनय करते हैं सबको एकसी भक्ति, सेवा, नमस्कार, पूजन आदि करते हैं ऐसे तापसियोंको विनयमिथ्यात्वी समझना चाहिये।
जो मद्य, मांस, शहद, पांच उदंबर, बाईस अभक्ष्य आदिके खानेके विचारसे रहित हैं ऐसे म्लेच्छ आविसे उत्पन्न हुआ धर्म तथा शून्यबावियोंसे उत्पन्न हुआ धर्म सब अज्ञानमिथ्यात्व है। इस प्रकार पांचों मिथ्यात्वोंका थोडासा स्वरूप बतलाया सो ही प्रश्नोत्तरोपासकाचारमें लिखा है-- कथ्यते क्षणिको जीव यत्र तत्त्वं च सर्वथा। अन्यः कर्म करोत्येव भुक्ते चान्यो हि तत्कलम्॥ मत्स्थादिभक्षणे दोषो नास्ति दुःखाकरं खलम् । मिथ्यात्वं विद्धि तन्मित्र कुबोधमतकल्पितम्।। ब्रूयते यत्र तीर्थेशे चाहारो मुक्तिसम्भवम् । स्त्रीणां गर्भापहारं च वर्द्धमानस्य दुःखदम् ॥ यष्टिकवस्त्रपात्रादि सर्व धर्मस्य साधनम्। तद्धि संशयमिथ्यात्वं भवेत्स्वेतपटनजम् ॥ पुण्यं जीववधायत्र शुद्धिः स्नानेन कथ्यते । क्रूरकर्मरताः देवाः गुरवः कामलालसाः ॥ पूजनं पशुदुष्टाहीस्तर्पणं मृतसज्जलात् । विपरीतं च तज्ज्ञेयं मिथ्यास्वं द्विजसम्भवम् ॥ विनयो गीयते यत्र पात्रापात्रेषु प्रत्यहम् । देवादेवेषु तद्विद्धि मिथ्यात्वं तापसव्रजम् ॥ अज्ञानजं कुमिथ्यात्वं भवेन्म्लेच्छादिगोचरम् । खाद्याखाद्य परित्यक्तविचारं शून्यवादिजम् ॥
इस प्रकार इन मिथ्यात्वोंका
श्रीपार्श्वनाथजोके समयमें सरयू नामको नबोके किनारे एक पलास नामके गांवमें रहनेवाले पिहितालव गुरुके शिष्य बुद्धिकोतिने एकान्त नामका मिथ्यात्व स्थापन किया था । उस एकांत मिथ्यात्वमें आत्माको क्षणिक माना है और मांसभक्षणाविक दोष नहीं बतलाया है। इस प्रकार एकांत मिथ्यात्वको उत्पत्ति हुई। है। सो ही लिखा है
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