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________________ चिसागर ७३) समानताना श्रीऋषभदेवके पुत्र भरत थे और भरतका पुत्र मारीच था। जब महाराज ऋषभदेवने दोक्षा ली थी तब उनके साथ बिना समझे तथा बिना गुरु आम्नायके केवल ऋषभदेवको भक्तिसे मारीचको आदि लेकर चार ॥ हजार राजाओंने दीक्षा ली थी। वह दीक्षा केवल देखा-देखी ली थी। तदनन्तर वे सब मुनि क्षुधा, तृषा, शोत, उष्ण, दंशमसक आवि परोषहोंसे पीड़ित होकर तथा अपने मनसे हो उस संयमको विराधना कर अनेक भेषोंको धारण करने लगे। कोई त्रिदण्डो हुए, कोई परिव्राजक आए। इस प्रकार उन्होंने अपने मनके अनुसार जुदे-जुदे ।। । अनेक भेष बनाकर अनेक मत स्थापन किये । वे सब कन्द, मूल, पत्र, पुष्प, फल और बिना जलका आहार लेने लगे। उन सबमें मारीच मुख्य था सो उसमें अपनी बुद्धिसे सांल्य और पातञ्जलि नामके दो शास्त्र बनाकर। सांस्यमत और पातञ्जलि मसका स्थापन किया । सो ही लिखा हैविवरीय मखें किच्चा विणासयं सव्वसंयम लीए । तत्तो पत्तासे वे सत्तमणरयं महाघोरं ।।। उसी समय महाराज भरतने ब्राह्मण वर्णको स्थापन किया था। वे ब्राह्मण कालदोषसे दशवे तोधकर । श्रीशीतलनायके समयमें जैनधर्मके श्रद्धान, ज्ञान और आचरणसे विमुख हो गये थे। तथा जैनधर्मके द्रोही और निन्दक बन गये थे। उसी समय एक मुखशालायन नामके ब्राह्मणने धर्मके लिये ब्राह्मणों को गोदान, सुवर्णवान आदि दश प्रकारके दान देनेको स्थापना की थी। उस समय उन्होंने और भी किसने ही प्रकारको विपरोसता, स्थापन की थी। तदनन्तर श्रीमुनिसुव्रतनाथके समयमें एक क्षीरकवम्ब ब्राह्मणके पुत्र पर्वतने महाविपरीत मिथ्यात्वका स्थापन किया। उसने विचित्र यश-कर्म करनेका विधान बसलाया। यश अज अर्थात् जो बोनेसे । फिर उत्पन्न न हों ऐसे तीन वर्षके पुराने चावल पा जौसे होम करनेका निषेध किया और अपने चलाये हुए। झूठे और विपरीत मतके अनुसार उस यज्ञकी अग्निमें अज अर्थात् बकरेके होम करनेका विधान बतलाया। इस प्रकार उसने महापापरूप वचनोंका स्थापन किया। उसी समय उसी क्षीरकदम्बके शिष्य नारद नामके ब्राह्मणने । । उस पर्वतके मतका खण्डन किया, परन्तु राजा बसुने पर्वतका पक्ष लेकर नारद ब्राह्मणको झूठा करना चाहा।। । परन्तु वह राजा बसु उस झूठके पापसे उसी समय सिंहासन समेत पृथ्वीमें फंस गया और मरकर नरक। पहुंचा । इस प्रकार विपरीत मिथ्यात्वको उत्पत्ति हुई है। यह कथन उत्तरपुराण, पञ्चपुराण, वहरिवंशपुराण, । पुण्यालय, आराधनाकथाकोश तथा और भी अनेक शास्त्रों में लिखा है । यहाँसे विस्तारके साथ जान लेना चाहिये। ६०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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