________________
सागर
मनाउdAINImundanामाmam
समझकर वान देता है यह कुपात्रदानके पुग्यसे कुभोगभूमियोंमें जन्म लेकर कुमनुष्य होता है । वहाँपर जघन्य। भोगभूमिके समान सुल, आयु, काय आदिको भोगता है। सो ही सिद्धांतसार दीपकके दशवें अधिकारमै लिखा है-- येऽहल्लिंगप्रपनन्नादिकारिण:कुमार्गगाः । अनालोचनपूर्व ये तपोबतचरन्ति च ॥ ६५ ॥ परेषां ये विवाहादिपापानुमतिकारिणः । ज्योतिष्कमन्त्रतंत्रादिवैद्यकर्मोपजीविनः ॥ १६ ॥ पंचाग्न्यादितपोनिष्ठ ये दृगादिविराधिनः । कुज्ञानकुतपोयुक्ता मौनहीनान्नभोजिनः ॥६॥ । कुकुलेषु च दुर्भावारसूतकादियुतेषु वा । आहारग्रहणोद्युक्ताः सदोषाशनसेविनः ॥ ६ ॥
इत्यादिशिथिलाचारा मायाविनः सिटपटाः।शुद्धिहीनाश्च ने सर्वे स्युः कुपात्राणि लिंगिनः॥ तेभ्यः कुपात्रलिंगेभ्यो दानं ददति ये शठाः । ते कुपुण्यांशतो जन्म लभन्तेऽत्र कुभूतिषु ॥ जघन्यभोगभूमेर्या मृत्यूत्पत्त्यादिका स्थितिः। सा ज्ञेया कुमनुष्याणां कुत्सिताभोगभूमिषु॥
२२६-चर्चा दोसौ छब्बीसवीं . प्रश्न—मौनव्रतसे भोजन न करना सदोष बतलाया सो मौन कहां-कहाँ धारण करना चाहिये ?
समाधान-लघुशंका ( पेशाब करते समय ) वोर्घशंका जाते समय ( शौच जाते समय ) में, स्नान करते समय, पंचपरमेष्ठीको पूजन करते समय, स्त्रीसम्भोग करते समय, भोजन करते समय और सामायिक आदि जप वा ध्यान करते समय इन सात स्थानोंमें मौन धारण करना चाहिये । सो हो लिखा है
हदनं मूत्रणं स्नानं पूजनं परमेष्ठिनाम्। भोजनं सुरस्तोत्रं कुर्यान्मोनसमन्वितः ॥
इन सात स्थानोंमें मौन धारण करना चाहिये इनके सिवाय जहाँपर वचन बोलनेसे राग वा द्वेष उत्पन्न । होता हो, वहाँपर भी मौन धारण करना योग्य है । लिखा भी है
दोषवादे च मौनम्। इस प्रकार आठ स्थानों में मौन धारण करना चाहिये।
sanaanaananda