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पर्यासागर
२२७-चर्चा दोसो सत्ताईसवीं प्रश्न-छठे कालमें मनुष्य कैसे होंगे तथा उनका व्यवहार कैसा होगा ?
समाधान-छठे कालका नाम दुःखमा दुःखमा है। वह इफईस हजार वर्षका है उसके प्रारम्भमें मनुष्य धूए के रंगके होंगे, वो हाथ ऊँचे होंगे, बन्दरोंके समान नग्न होंगे । उनको उत्कृष्ट आयु बीस वर्षकी होगी । एक विनमें अनेक बार भोजन करेंगे, मांस भक्षी होंगे। उनके निवास बिलोंमें होंगे। उस समय नगर, पुर, गाँव आदि की रचना नहीं रहेगी। उनका स्वभाव बुष्ट होगा। नरक वा तिर्यञ्च गतिसे आये हुए ही यहाँपर उत्पन्न होंगे । अपनी माता, भगिनी, पुत्री आदि स्त्रियों के साथ हो पशुओंके समान काम सेवन करेंगे। तथा । अपनी आयुके अन्त में मर कर तिर्यच वा नरक में ही उत्पन्न होंगे। इस प्रकार छठे दुःखम दुःखमा कालमें दुराचारी, महापापी मनुष्य होंगे और वे घोर दुःखोंके भोगनेवाले होंगे। उस समय बादलोंमें पानी नहीं रहेगा, पृथ्वीके वृक्षादिक वनस्पतियों में कोई रस स्वाद नहीं रहेगा। मनुष्य, स्त्रियां सब निराश्रय रहेंगी उस छठे कालके
नमें मानुषाकी पाईएमा हाम अगी। वे बहुत कुरूपी होंगे। उस समय उत्कृष्ट आयु सोलह वर्ष 1 को होगी। तथा शीत उष्णको बाधासे ये बहुत ही पीड़ित होंगे। सोही सिद्धांतसारकोपकके नौवें अधिकारमें
लिखा है। अस्यादौ धूम्रवर्णाभा नरा हस्तद्वयोन्नताः।शाखामृगोपमा नग्ना वर्षविंशतिजीविनः॥३०॥ । मांसाद्याहारिणोनेकवाराशिनो दिन प्रति। विलादिवासिनो दुष्टा आयान्ति दुर्गतिं द्वयात् ॥
मात्रादिकामसेवांधास्तिर्यकनरकगामिनः भविष्यन्ति दुराचाराः पापिनो दुःखभोगिनः॥३०६
तस्मिन्काले शुभातीते मेघाः स्वच्छजलाप्रदा स्वादुवृक्षोज्झिता पृथ्वी निराश्रया नरास्त्रियः।। । कालस्यान्ते करैकोच्चदेहा नराः कुरूपिणः । उत्कृष्टषोडशाब्दायुष्काः शीतोष्णादिपीडिता
२२८-चर्चा दोसौ अट्ठाइसवीं प्रश्न-श्रीमहावीर स्वामीको तथा पार्श्वनाथ स्वामीको तपश्चरण करते समय उपसर्ग हुआ था परंतु उस समय तीनों लोकोंके इन्द्रोंको वा चतुणिकायके वेधाविक अन्य जीवोंको भी मालूम नहीं हुआ था। क्योंकि