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________________ I AJSHATHORTAL Sahsaसान्चनरम ... २२१-चर्चा दोसौ इकईसवीं प्रश्न-असुर कुमारोंके इंद्र घमरेंद्र और वैरोचनेन्द्र हैं ये दोनों सौधर्म स्वर्गके स्वामी सौधर्मेन्द्रसे तथा पर्चासागर । ऐशान स्वर्गके स्वामी ऐशानेन्द्रसे युद्ध करनेको गये थे। तब इन्द्र ने इनपर बत्रका प्रहार किया था तब चमरेंद्र ४५८ ] वहाँसे भागा और अपने पातालमें आ छिपा । ऐसी कहावत है सो क्या सत्य है ? यह कहावत असत्य है । दिगम्बर आम्नायके विरुद्ध है । यह कहावत श्वेताम्बर आम्नाय को है इसलिये विरुद्ध और श्रद्धान करने योग्य नहीं है प्रश्न-यदि ये दिगम्बर आम्नायके वाक्य नहीं है तो फिर दिगम्बर आम्नायमें यह कहावत प्रचलित । क्यों है ? समाधान कुछ क्ष का स्वभाव ही ऐसा है जिसस चमरेन्द्र सौधर्म इन्द्रसे व्यर्थ ही ईर्षाभाव रखता है। इसी प्रकार वैरोचन इन्द्र ईशान इन्द्रसे व्यर्थ ही ईर्षाभाव रखता है । यद्यपि ये दोनों हो सौधर्म, ऐशान। इन्द्रोंका कुछ कर नहीं सकते तथापि ईर्षाभाव रखकर व्यर्थ हो पापका बंध करते हैं । ऐसा वर्णन सिद्धांतसार प्रदोपकके दशा अधिकारमें आया है । यथा। सौधर्मेन्द्रेण चित्ते चमरेन्द्रः कुरुते वृथा। सहाकिंचित्करामीयां क्षेत्रसद्भाववर्तनात् ॥७॥ तथैशानसुरेन्द्रेण सहेष्या निष्फलो मुधा । हृदि वैरोचनेन्द्रोपि करोति पापकारिणीम्॥७१ इससे सिद्ध होता है कि ये लड़ने नहीं गये, लड़नेको बात कहना मिथ्या है ।। २२२-चर्चा दोसौ बाइसवीं प्रश्न-भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी ये तीनों भवनत्रिकदेव कौनसे तप करनेसे होते हैं ? समाधान--जो जीव उन्मार्गचारी (मोक्षमार्गको छोड़कर कुमार्गमें चलनेवाले ) होते हैं, सम्यग्दर्शनके घातक, अकाम निर्जरा करनेवाले, युवावस्थामें हो तपश्चरण धारण कर शिथिलाचाररूप श्वेताम्बरादिक धर्म को धारण करनेवाले अथवा मिथ्या संयमको धारण करनेवाले, पंचाग्नि तप करनेवाले, दूसरोंकी निवा करने वाले, तापसियोंका भेष धारण करनेवाले, अज्ञानतासे कायक्लेश करनेवाले ऐसे शिव धर्मके उपासक शैवलिंगी RR aanti-
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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