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वैष्णव तथा और भी अनेक भेषोंको धारण करनेवाले मनुष्याविक जीव मरकर भवनत्रिकों में देख उत्पन्न होते है।
हैं। इनके सिवाय जो चलो, मुडो, भैरव, क्षेत्रपाल, बोजासणी, शोतला, दुर्गा, कात्यायनी आदि अनेक नीच व सागर
। देवोंकी उपासना करनेवाले जीव तथा पांचों महापापोंको धारण करनेवाले क्रोधो, माती, कपटो, लोभी, कामी । आदि अनेक अवगुणोंको धारण करनेवाले. केवल भेष बनाकर लोगोंसे जबर्दस्तो गुरु बनवान ऐसे नोच गुरुओं
की सेवा करनेवाले और हिंसामयो नीच धर्मको माननेवाले, झूठ, चोरी, कुशील, परित्रह, आरम्भ आदिमें धर्म । माननेवाले वा ऐसे धर्मको धारण करनेवाले, नीच पाखण्डियोंके भक्त, नीच भेष या खोटे भेषको धारण करने वाले, हिंसा धर्मको प्रतिपादन करनेवाले, खोटे शास्त्रोंको माननेवाले जीव नीच देवोंमें जाकर उत्पन्न होते हैं। ऐसा समझकर अपने आत्मसुखके लिये स्वर्ग मोक्षके देनेवाले जैनधर्मको ही धारण करना चाहिये । यही कल्याण
का मार्ग है । दुष्टोंके समान कुमार्ग वा मिध्यामार्ग कभी स्वीकार नहीं करना चाहिये । सो ही सिद्धांतसार 11 दोपकके चौदहवें अधिकारमें लिखा है
उन्मार्गचारिणो येत्र विराधितसुदर्शनाः। अकामनिर्जरायुक्ता बालावलतपोन्विताः ॥२४॥ शिथिला धर्मचारित्रे मिथ्यासंयमधारिणः ।पंचाग्निसाधने निष्ठा सनिदानाश्च तापसा॥२५॥ अज्ञानक्लेशिनः शैवलिंगिनो ये नरादयः।भावनादित्रयाणां ये यान्ति जीवगतित्रयम् ॥२६॥ ये नीचदेवसंसक्ता नीचानीचगुरुश्रिताः। नीचधर्मरताः नीचपाषंडोभक्तिकाः शटाः ॥२७॥ नीचसंयमदुर्वेशाः नीचशास्त्रतपोन्विताः। तेऽहो सर्वत्र नीचाः स्युः देवत्वेऽन्यत्र च सदा॥ मत्वेति जैनसन्मार्ग स्वमोक्षदं सुखार्थिभिः। विमुच्च श्रेयसे जातु न ग्राह्य दुष्पथं खलम्॥२६॥
२२३-चर्चा दोसो तेवीसवीं प्रश्न-चतुणिकायके वेवों में महाऋद्धियोंको धारण करनेवाले इन्द्रादिक देव अपनो आयु पूरो कर किस किस गतिको प्राप्त होते हैं ?
समाधान-सौधर्म इन्द्र सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेके प्रभावसे उसको महादेवी इन्द्राणी, समस्त दक्षिण दिशाके इन्द्र, चारों लोकपाल, समस्त लोकान्तिक देव और सर्वार्थसिद्धिके अहमिन्द्र अपनी आयुके क्षय होनेपर । वहाँसे चयकर महापुण्याधिकारी मनुष्यभव धारण करते हैं। बहाँपर वे पुरुष ही होते हैं। संसारके सुखोंको !