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सागर
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कालोतिदुःखमाभिख्यो नरकेष्वस्ति सप्तसु । विश्वासाताकरीभूता शाश्वतो नरकांगिनाम् ॥ चतुर्णकाये देवानां स्वर्गादिसर्वधामसु । सुखमासुखमा यालो नित्योस्ति सुखसागरः ॥२॥ यहाँपर जो सुखमा सुखमा वा दुःखमा दुःखमा काल बतलाया है । सो केवल सुख वा दुःखको अपेक्षासे बतलाया है उस कालको आयु, काय आविकी अपेक्षासे नहीं बतलाया है। भावार्थ ---नरक, स्वर्गकी जो आयु वा काय नियत है वही रहता है । उसमें अन्तर नहीं पड़ता केवल सुख या दुःख उस कालके समान है ।
२१६ - चर्चा दोसौ उनईसवीं
प्रश्न – स्वर्गके विमान आकाशमें किसके आधारपर स्थित है ?
समाधान – सौधर्म स्वर्गसे लेकर सहस्रार तक बारह स्वगोंके विमान जल और पवनके आधार हैं तथा आनत स्वर्गसे लेकर बाकी स्वर्ग, नौ वैयक, नौ अनुविश और पांचों पंचोसरोंके समस्त विमान बिना किसी आधारके निराधार अपने आप स्थिर हैं । सो हो सिद्धांतसार दीपकके प्रथम अध्यायमें लिखा है
जलवातद्वयाधोरणैव व्योम्नि मनोहराः । प्रगान्ताधिकल्पानां चतुर्वर्णा विमानकाः ॥७६॥ मैवेयकादिपंचानुत्तरान्तानां भवन्ति ते । निराधारास्त्रयोविंशाग्रसहस्त्रप्रमाः स्वयम् ॥८०॥
प्रश्न यह लोक किसके आधार है ?
समाधान -- यह लोक घनोदधि वात, घनवात और सनुवातके आधार है। अर्थात् यह लोक घनोदधि नामकी धनीभूत वायुसे घिरा है। उसीके आधारपर ठहरा है, घनोदधि वायु घनवायुके आधार है, घनवायु वायुके आधार हैं और तनुवायु आकाशके आधार है तथा आकाश स्वयं अपने आधार है। सो ही सिद्धांतसारमें पहले अधिकारमें लिखा है
घनोदधिर्धनाख्यश्च तनुवात इमे त्रयः । सर्वतो लोकमावेष्ट्य नित्यास्तिष्ठति वायवः ॥८०॥
श्रुतसागरी टीका में भी इसी प्रकार लिखा है
घनोदधिजगत्प्राणः सर्वलोकस्य वेष्ठन | घनप्रभजनो नाम द्वितीयस्तदनंतरम् ॥ तनुवात उपयस्य त्रलोक्याधारशक्तिमान् । वाता एते स्थितिस्तेषां कथ्यमानानि शम्यतं ॥
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